
जितेन्द्र सिंह शेखावत/ विश्व में धर्म की पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानन्द की तीन बार जयपुर यात्रा का गवाह चांदपोल दरवाजा बाहर स्थित खेतड़ी हाउस आज बदहाल है। खेतड़ी राजा अजीत सिंह शेखावत ने अपने गुरु विवेकानन्द को इन महलों में ठहराया और धर्म का उपदेश ग्रहण किया था। खेतड़ी के अंतिम शासक सरदार सिंह की मृत्यु के बाद से ही इस इमारत के राजसी महल खंडहर में तब्दील हो गए हैं।
स्वामीजी शिकागो से भारत लौटे तब अजीत सिंह ने खेतड़ी हाउस में भव्य रोशनी और आतिशबाजी करवा खुशी का इजहार किया था। प्रसिद्ध इतिहासकार पं. झाबरमल्ल शर्मा ने लिखा कि स्वामी विवेकानंद खेतड़ी को अपना दूसरा घर मानते थे। खेतड़ी राजा अजीत सिंह विवेकानंदजी की माता को अंत समय तक पांच सौ रुपए महीने का मनीऑर्डर भेजते रहे।
दरवाजे भी उखाड़ ले गए
जिन महलों में स्वामीजी ने निवास किया अब उन महलों के कलात्मक दरवाजे लोग उखाड़ ले गए। पूरा परिसर खंडहर में तब्दील हो गया है। कभी फूलों से महकने वाले बाग बगीचे और तरणताल भी मिट्टी में दफन हो चुके हैं। किवाड़ों के गायब होने से महल और सूने गलियारों में चमगादड़ों ने डेरा डाल दिया है।
गोल साफे में पहला फोटो भी यहीं का
स्वामीजी 26 जुलाई 1891 को पहली बार राजा अजीत सिंह के मेहमान बन एक सप्ताह तक खेतड़ी हाउस में रहे। दूसरी बार वे 4 अक्टूबर 1891 को जीण माता होते हुए जयपुर आए। इसके बाद वे 13 सितम्बर 1897 को दस दिन तक हाउस में रहे। शेखावाटी का गोल साफा पहने विवेकानंद का पहला चित्र भी खेतड़ी हाउस में खींचा गया। प्रवास के दौरान रामनिवास बाग के पास स्वामीजी बाबा गोविंंददास की बगीची में भी धर्म चर्चा करने गए थे।
व्याकरणाचार्य पं. सूर्यनारायण शर्मा के साथ पाणिनि रचित अष्टध्यायी विषय पर चर्चा भी की। जयपुर के सैन्य कमांडर हरिसिंह लाडखानी के खाटू हाउस, कौंसिंल के मंत्री संसार चन्द्र सेन की हवेली और जैकब रोड स्थित जयपुर क्लब में भी रहे। विश्व धर्म सम्मेलन में विवेकानन्द को शिकागो भेजने का सारा खर्चा खेतड़ी राजा अजीत सिंह ने उठाया। उनके मुंशी जगमोहन लाल ने शिकागो के लिए प्रथम श्रेणी का टिकट ओरियंट कम्पनी के पैनिनशूना जहाज में कराया।
शिकागो से वापस लौटने पर अजीत सिंह ने खेतड़ी गढ़ के दरबार में अभिनन्दन पत्र पारित किया। अजीत सिंह ने ही उनका नाम विविदिशानंद से विवेकानन्द रखा। दरबार में बिना साफा के जाने का रिवाज नहीं होने पर स्वामीजी ने खेतड़ी में जो साफा बांधा वैसा ही साफा वे अंत समय तक पहने रहे।
विवेकानंद सबसे पहले माउंट आबू में किशनगढ़ के मुंशी फैज अली से मिले जहां पर खेतड़ी के मुंशी जगमोहन लाल से परिचय करवाया। खेतड़ी नरेश अजीत सिंह स्वामीजी से प्रभावित हुए और उन्हें खेतड़ी लाए। इस दौरान अलवर महाराजा मंगल सिंह, ठाकुर भूर सिंह मलसीसर भी स्वामीजी के सम्पर्क में आए।
Updated on:
12 Jan 2018 09:12 am
Published on:
12 Jan 2018 08:59 am
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