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नाटक ‘मेरी मां’ में दिखी मां-बेटी के रिश्ते की खूबसूरती

-रवीन्द्र मंच के मुख्य सभागार में हुआ मंचन, नृत्यांगना और संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा थीं मुख्य अतिथि

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जयपुर

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Mohmad Imran

Jul 24, 2023

नाटक 'मेरी मां' में दिखी मां-बेटी के रिश्ते की खूबसूरती

नाटक 'मेरी मां' में दिखी मां-बेटी के रिश्ते की खूबसूरती

जयपुर। राजस्थानी लोक कलाओं और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से रविवार शाम रवीन्द्र मंच पर राजस्थान की संस्कृति और परम्पराओं पर आधारित संगीतमय नाटक 'मेरी मां' का मंचन किया गया। नाटक में राजस्थानी संस्कृति, संगीत, लोक कलाकारों और लोक कलाओं के समक्ष खड़ी चुनौतियों को मां-बेटी के रिश्तों के इर्द-गिर्द बुना गया था। नाटक में दिखाया गया कि अमरीका में पली-बढ़ी संगीता अपनी मां मैना गुर्जरी को ढूंढने राजस्थान आती है। यहां वह अपने बापू से मिलती है और उसे पता चलता है कि उसकी मां एक बहुत बड़ी लोक कलाकार थीं। अपनी मां को खोजते-खोजते वह अपनी मां के पैतृक गांव पहुंच जाती है। यहां उसे पता चलता है कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी गायकी और संगीत आज भी राजस्थान के धोरों में जीवित है।

राजस्थान के चर्चित लेखक दिवंगत मणिमधुकर के उपन्यास 'पिंजरे में पन्नाÓ पर आधारित और एक्टर्स थिएटर एट राजस्थान के बैनर तले इस नाटक का नाट्य रूपान्तरण रंगकर्मी जयरूप जीवन ने और निर्देशन राजस्थान रंगमंच के डॉ. चन्द्रदीप हाडा ने किया था। यह नाटक आजादी का अमृत महोत्सव में संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली के सहयोग से लोक नाट्य प्रयोगोत्सव के रूप में किया गया। पहली बार जयपुर पधारीं, संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं।

विश्व के मूल में स्त्री ही केन्द्र
डॉ. संध्या पुरेचा ने कहा, 'विश्व के मूल में स्त्री ही केन्द्र बिंदु है। हमारी कला, संस्कृति और संस्कार को बढ़ावा देना और उसका पोषण करने की शुरुआत भी नारी ही करती है। नारी का प्रथम रूप जब बच्चा देखता है, वह 'मां' होता है। इसलिए, हमारे लोकगीत, लोकनृत्य, लोकनाट्य, लोकोत्सव, इन सभी में नारी की ही छवि ही नजर आती है और उसकी महानमा को दर्शाया गया है। हमारी संस्कृति में नारी देवी का स्वरूप है। हमारी ये कलाएं लोक में जुड़ी हुई हैं। आज का कार्यक्रम भी लोक भावना से जुड़ा था। हमें हमारी धरोहर का सम्मान करना चाहिए और हमारी धरोहर खेत-खलिहानों, लोकोत्सव और लोक संस्कृति में बसी है। भरत मुनि ने अपने नाट्य शास्त्र में वेद प्रमाण, अध्यात्म प्रमाण और लोक प्रमाण को आधर बनाया है। उन्होंने ऋग्वेद से पाठ्य, यजुर्वेद से अभिनय, सामवेद से गीत और अथर्ववेद से रसों की परिकल्पना को लेकर एक नाट्य वेद 'पंचम वेद' की रचना की। इस पांचवे वेद को भरत मुनि ने अपने नाट्य शस्त्र गं्रथ में सबसे उत्तम प्रमाण माना है। आज का नाटक इसी लोक प्रमाण और राजसथानी संस्कृति में रचा-बसा था।

कलाकारों का किया सम्मान
कार्यक्रम में मंच पर जयपुर और राजस्थान के अन्य जिलों से आए पदमश्री और अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित कलाकारों से भेंट भी की। इनमें कालबेलिया डांसर गुलाबो सपेरा, मिनिएचर आर्टिस्ट शकिर अली, गजल गायक अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन, ध्रुपद गायिका मधु भट्ट तैलंग आदि कलाकार शामिल रहे। भाजपा सांस्कृतिक एवं पर्यटन प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक मनीष पारीक ने सभी का परिचाय करवाया।