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सात साल चली खरीद प्रक्रिया, 1.72 करोड़ की मशीन 5.34 करोड़ में खरीदी

युवा मामले एवं खेल विभाग में जनता के धन के दुरुपयोग का एक नया मामला सामने आया है। जयपुर स्थित शूटिंग रेंज के लिए स्वचालित इलेक्ट्रॉनिक टारगेट स्कोरिंग प्रणाली की खरीद में सात वर्षों तक प्रक्रिया चली, जिसके दौरान मशीन की कीमत चार गुना बढ़ गई। प्रारंभिक प्रस्ताव 1.72 करोड़ रुपए का था, लेकिन अंततः 5.34 करोड़ रुपए में मशीन खरीदी गई, जिससे 3.62 करोड़ रुपए का अनावश्यक व्यय हुआ।

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जयपुर

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GAURAV JAIN

Sep 28, 2025

- एजी रिपोर्ट में बड़ा खुलासा: खेल विभाग में 3.62 करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यय

- युवा एवं खेल विभाग में करोड़ों की स्वचालित टारगेट प्रणाली खरीद में अनियमितताएं

- खरीद प्रक्रिया 2016 में शुरू हुई और 2023 में हो सकी पूरी

जयपुर

युवा मामले एवं खेल विभाग में जनता के धन के दुरुपयोग का एक नया मामला सामने आया है। जयपुर स्थित शूटिंग रेंज के लिए स्वचालित इलेक्ट्रॉनिक टारगेट स्कोरिंग प्रणाली की खरीद में सात वर्षों तक प्रक्रिया चली, जिसके दौरान मशीन की कीमत चार गुना बढ़ गई। प्रारंभिक प्रस्ताव 1.72 करोड़ रुपए का था, लेकिन अंततः 5.34 करोड़ रुपए में मशीन खरीदी गई, जिससे 3.62 करोड़ रुपए का अनावश्यक व्यय हुआ।

यह खुलासा हाल ही में विधानसभा में प्रस्तुत भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (एजी) की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 में राजस्थान राज्य क्रीड़ा परिषद ने स्विट्जरलैंड की मैसर्स एसआइयूएस एजी फर्म से 10 मीटर (16 सेट), 25 मीटर (5 सेट) और 50 मीटर (5 सेट) की प्रणाली के लिए 1.80 करोड़ रुपए का प्रस्ताव प्राप्त किया था, जिसे वार्ता के बाद 1.72 करोड़ रुपए पर तय किया गया। बावजूद इसके परिषद ने कोई आदेश जारी नहीं किया।

इसके बाद कई दौर की वार्ताएं हुईं, लेकिन परिषद की ओर से साख पत्र (एलसी) नहीं खोला गया और समझौते पर हस्ताक्षर भी नहीं हुए। नवंबर 2019 में पूरी खरीद प्रक्रिया रद्द कर दी गई। परिषद ने दोबारा प्रक्रिया शुरू की, लेकिन बार-बार निविदाएं रद्द होती रहीं। अंततः जनवरी 2023 में चौथी बार निविदा जारी की गई, जिसमें मैसर्स जैम इंटरनेशनल को 5.34 करोड़ रुपए में आपूर्ति आदेश दिया गया। जुलाई 2023 में मशीन की स्थापना की गई।

‘अकुशल’ और ‘मनमानी’ प्रक्रिया

एजी ने रिपोर्ट में इस प्रक्रिया को ‘अकुशल’ और ‘मनमानी’ करार दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि अप्रैल 2018 की तुलना की जाए, तो 1.65 करोड़ रुपए अधिक भुगतान हुआ, जबकि प्रारंभिक प्रस्ताव से तुलना करें तो यह राशि 3.62 करोड़ रुपए तक पहुंचती है।