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जयपुर के इस मंदिर में है अनुठा ‘राम दरबार’, श्रीराम-सीता-हनुमान से लेकर भरत -लक्ष्मण-शत्रुघ्न भी है विराजमान

उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां संपूर्ण राम दरबार विराजित है।

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Shri Ramchandra Ji Temple

Shri Ramchandra Ji Temple

देवेंद्र सिंह

जयपुर. छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध जयपुर के चांदपोल बाजार में स्थित श्री रामचंद्र जी का प्राचीन मंदिर केवल श्रद्धा और भक्ति का केंद्र नहीं, बल्कि ज्योतिषीय विज्ञान, स्थापत्य कला और राजपरिवार की आस्था का अद्भुत संगम है। इस मंदिर की नींव किसी साधारण तिथि पर नहीं, बल्कि पुष्य नक्षत्र में रखी गई थी, जिसे देवगणों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

पुष्य नक्षत्र में बनीं प्रतिमाएं, 18 वर्षों में हुआ निर्माण

मंदिर की सबसे खास बात है यहां प्रतिष्ठित संपूर्ण राम दरबार, जिसमें भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमान जी विराजमान हैं। मंदिर निर्माण की ज्योतिषीय परंपरा के अनुसार, इन सभी प्रतिमाओं का निर्माण केवल पुष्य नक्षत्र में ही होता था। इस कारण इन्हें पूर्ण रूप देने में 18 वर्ष, 9 महीने और 24 दिन का समय लगा।

भगवान की दृष्टि हर भक्त की ओर

मंदिर महंत नरेंद्र तिवाड़ी बताते हैं कि यह उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां संपूर्ण राम दरबार विराजित है। यहां भगवान की प्रतिमाएं इस विशेष ढंग से स्थापित हैं कि हर श्रद्धालु को यह अनुभूति होती है कि ठाकुर जी उन्हीं की ओर देख रहे हैं। यह स्थापत्य और भावनात्मक अनुभव का दुर्लभ मेल है।

पाटोत्सव पर ठाकुर जी धारण करते हैं तलवार

इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा वैशाख शुक्ल पंचमी को विधिपूर्वक की गई थी। तभी से हर वर्ष इसी दिन पाटोत्सव मनाया जाता है। इस अवसर पर ठाकुर जी को राजशाही वस्त्र, आभूषणों के साथ तलवार धारण करवाई जाती है जो दिव्यता और शौर्य का प्रतीक मानी जाती है।

नक्काशी और चित्रकारी में झलकती संस्कृति

मंदिर के संगमरमर के खंभों पर नागफनी और सिंहमुख की नक्काशी तथा दीवारों और छत पर की गई भित्ति चित्रकारी देखते ही बनती है। मंदिर के जगमोहन में रामचरित मानस के प्रसंगों के साथ जयपुर के दर्शनीय स्थलों को भी दर्शाया गया है। साथ ही भगवान विष्णु के 24 अवतारों का सुंदर चित्रण भी यहां किया गया है।

राज परिवार की अगाध आस्था

इस मंदिर का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय की रानी गुलाब कंवरधीरावत जी ने अपने हाथ खर्च राशि से करवाया था। मंदिर निर्माण में लगभग 19 वर्ष लगे। इसकी संरचना ‘चौकचूड़ी उतार पद्धति’ पर आधारित है, जिससे सड़क से भी भगवान के दर्शन संभव हो पाते हैं।