
जयपुर . रणथंभौर टाइगर रिजर्व में आपसी संघर्ष में एक टाइगर की मौत के बाद एक बार फिर टाइगर रिजर्व में जगह की कमी और मानवीय दखल की बात सामने आ गई है। देश में गत सात वर्षों के दौरान 72 टाइगरों की मौत का कारण आपसी संघर्ष रहा है। इसके बावजूद वन विभाग टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में मानवीय दखल कम करने के गंभीरता से प्रयास नहीं कर रहा है।
नेशनल टाइगर कनसरवेजन ऑथीरिटी (एनटीसीए) के अनुसार 2011 से 20 सितम्बर तक 489 टाइगर की मौत हुई है। इनमें से 233 टाइगर की मौत के कारणों का अध्ययन एनटीसीए ने किया। जिसमें मौत का सबसे बड़ा टाइगर का आपसी संघर्ष सामने आया। इस दौरान करीब 72 टाइगर की मौत का कारण हैबीटेट को लेकर दूसरे टाइगर से झगड़े के दौरान हुई है। राजस्थान में करीब चार टाइगर की मौत संघर्ष के चलते हो चुकी है। इनमें भी तीन टाइगर की मौत एक वर्ष से कम अवधि में हुई है।
टाइगर बढ़े, उनके लिए जंगल नहीं
रणथंभौर टाइगर रिजर्व समेत देश के लगभग सभी जगह टाइगर की आबादी बढ़ी, लेकिन उनके लिए आरक्षित जंगल नहीं बढ़ सके। भारतीय वन्य जीव संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार देशभर में 2200 से अधिक टाइगर है। रणथंभौर समेत देशभर के टाइगर रिजर्व में टाइगर की संख्या के मुकाबले उनके लिए जंगल कम है। वर्तमान में रणथंभौर में नर-मादा और शावक टाइगर करीब 60 से अधिक है।
गलियारे बचाने की आवश्यकता
जानकारों के अनुसार टाइगर की आबादी को संरक्षित करने के लिए इनके बीच प्रतिस्पर्धा कम करने पर जोर देना चाहिए। इसके लिए टाइगर के आवासों को जोडऩे वाले गलियारों को बचाने की आवश्यकता है। साथ ही मानवीय दखल कम करने के लिए गांवों के शिफ्ट करने का काम तेज करने का सुझाव दिया है।
इधर, टी-33 की मौत की उच्चस्तरीय जांच की मांग
पीपुल फॉर एनीमल्स के प्रदेश प्रभारी बाबूलाल जाजू ने राष्ट्रीय टाईगर प्रोजेक्ट चेयरमेन एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर टाइगर टी-33 की मौत की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने बताया कि भूखा रहने के दौरान उसको ट्रेंकुलाईज कर जाइले-जिन इंजेक्शन अधिक मात्रा में लगा दिया, जिससे टाइगर की मृत्यु हुई है।
Published on:
21 Sept 2017 08:12 pm
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
