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Rajasthan: हाईकोर्ट के निर्णय के बाद रूकेगा मतदाता सूची कार्यक्रम? वन स्टेट-वन इलेक्शन में नया मोड़, जानें ‘इनसाइड स्टोरी’

Rajasthan Politics: राजस्थान में पंचायतीराज और नगरीय निकाय चुनावों को लेकर चल रहे कानूनी और राजनीतिक विवाद में नया मोड़ आया है।

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Panchayat elections in Rajasthan

(पत्रिका फाइल फोटो)

Rajasthan Politics: राजस्थान में पंचायतीराज और नगरीय निकाय चुनावों को लेकर चल रहे कानूनी और राजनीतिक विवाद में नया मोड़ आया है। राजस्थान हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सिंगल बेंच के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिसमें राज्य सरकार को जल्द से जल्द पंचायत चुनाव कराने और ग्राम पंचायतों में नियुक्त प्रशासकों को हटाने का निर्देश दिया गया था।

क्योंकि इस निर्णय ने पंचायतीराज चुनावों की प्रक्रिया को अनिश्चितता में डाल दिया है। साथ ही, राज्य सरकार की 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' नीति को लागू करने की योजना पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। डबल बेंच ने इस मामले में अपना अंतिम फैसला रिजर्व रखा है, जिसके बाद सभी की नजरें कोर्ट के अगले कदम पर टिकी हैं।

सिंगल बेंच के इस आदेश से हुआ विवाद

दरअसल, 18 अगस्त 2025 को राजस्थान हाईकोर्ट की जस्टिस अनूप धांद की सिंगल बेंच ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया था। इस आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया गया था कि वह जल्द से जल्द पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव कराए तथा ग्राम पंचायतों में नियुक्त प्रशासकों को हटाए। इस आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने तत्काल प्रभाव से चुनाव की तारीखों की घोषणा करने की तैयारी शुरू कर दी थी।

हालांकि, राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ डबल बेंच में अपील दायर की। जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संजीत पुरोहित की डबल बेंच ने इस अपील पर सुनवाई की। सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद और अतिरिक्त महाधिवक्ता कपिल प्रकाश माथुर ने दलील दी कि सिंगल बेंच का आदेश अनुचित है, क्योंकि एक अन्य डबल बेंच पहले ही पंचायत चुनाव और परिसीमन से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर चुकी है और उसका फैसला रिजर्व है।

उन्होंने तर्क दिया कि सिंगल बेंच को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था, क्योंकि याचिकाओं में केवल प्रशासकों के निलंबन और बर्खास्तगी को चुनौती दी गई थी, न कि जल्द चुनाव कराने की मांग की गई थी। डबल बेंच ने सरकार की दलील को स्वीकार करते हुए सिंगल बेंच के 18 अगस्त के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी।

मतदाता सूची और परिसीमन का मुद्दा

बता दें, हाईकोर्ट के इस अंतरिम आदेश ने राज्य निर्वाचन आयोग के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। आयोग ने 22 अगस्त को पुराने परिसीमन के आधार पर मतदाता सूचियां तैयार करने का शेड्यूल जारी किया था। हालांकि, डबल बेंच के फैसले के बाद अब मतदाता सूची के कार्यक्रम में संशोधन या स्थगन की संभावना है।

विशेषज्ञों का मानना है कि नए परिसीमन के आधार पर पंचायतें और निकाय अस्तित्व में आ चुके हैं, लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद आयोग को अपने कार्यक्रम पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। इसके साथ ही, निर्वाचन आयुक्त मधुकर गुप्ता का कार्यकाल अगले माह समाप्त होने वाला है। नए आयुक्त की नियुक्ति के बाद ही मतदाता सूची और चुनाव कार्यक्रम को लेकर कोई निर्णय लिया जा सकता है।

निर्वाचन आयुक्त मधुकर गुप्ता ने एक बयान में कहा कि हम हाईकोर्ट के आदेश का अध्ययन कर रहे हैं। अभी मतदाता सूची के कार्यक्रम में कोई बदलाव करने की योजना नहीं है, लेकिन फैसले के विस्तृत अध्ययन के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

यहां देखें वीडियो-


वन स्टेट, वन इलेक्शन' का क्या होगा?

बताते चलें कि भजनलाल सरकार 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' की नीति को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है। इस नीति के तहत सभी पंचायतों और नगरीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की योजना है। सरकार का तर्क है कि इससे न केवल प्रशासनिक खर्चों में कमी आएगी, बल्कि विकास कार्यों पर भी अधिक ध्यान दिया जा सकेगा।

हालांकि, परिसीमन और नए जिलों के गठन के कारण चुनाव प्रक्रिया में देरी हो रही है। सत्तारूढ़ बीजेपी ने इस नीति का खुलकर समर्थन किया है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने एक बयान में कहा था कि हम 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' के पक्ष में हैं। इससे लागत कम होगी और सरकार विकास कार्यों पर ध्यान दे सकेगी। हम निर्वाचन आयोग के काम में कोई हस्तक्षेप नहीं करते। अगर चुनाव होते हैं, तो हम तैयार हैं और जीत हासिल करेंगे।

वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार जानबूझकर चुनाव टाल रही है, ताकि प्रशासकों के जरिए पंचायतों पर नियंत्रण बनाए रख सके।

प्रशासकों की नियुक्ति पर क्या विवाद?

बताते चलें कि पंचायतों और निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति का मुद्दा भी इस विवाद की एक अहम कड़ी है। क्योंकि सरकार ने कार्यकाल पूरा कर चुके सरपंचों को ही प्रशासक नियुक्त किया था, ताकि पंचायतों का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चल सके। हालांकि, कुछ प्रशासकों के खिलाफ शिकायतें मिलने पर उन्हें हटा दिया गया था।

इसके बाद सरकार ने अपनी अपील में दलील दी कि हटाए गए प्रशासकों को कोई विधिक क्षति नहीं हुई है, क्योंकि नए चुनाव के बाद उन्हें वैसे भी हटाया जाना था।

सरकार और आयोग में टकराव क्यों?

गौरतलब है कि हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश के बाद निर्वाचन आयोग ने जल्द चुनाव कराने की घोषणा की थी, लेकिन सरकार की 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' नीति के कारण दोनों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई। सरकार का कहना है कि परिसीमन और नए जिलों के गठन के कारण वार्डों का पुनर्गठन हुआ है, जिसके लिए और समय चाहिए। इस मुद्दे पर सरकार और आयोग के बीच मतभेद सामने आए हैं।