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राजस्थान में है दुनिया की सबसे बड़ी तोप, जो इतिहास में चली सिर्फ एक बार… वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

Jaivan Cannon : विजय का किला 'जयगढ़' में एक ऐसी तोप है जिससे 35 किमी दूर बेठा दुश्मन भी तबाह हो सकता है। प्राचीन काल में तोप बनाई तो युद्ध के लिए गई थी लेकिन चौकने वाली बात यह है कि इसका कभी इस्तेमाल नहीं हुआ। चलिए जानते है इस विशेष तोप के बारे में।

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जयपुर

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Supriya Rani

Jun 28, 2024

Jaigarh Fort : राजस्थान की राजधानी जयपुर के जयगढ़ किले में एक ऐसी तोप रखी हुई है जो एशिया की सबसे बड़ी टॉप मानी जाती है। इसका नाम किले के अनुरूप 'जयबाण' रखा गया है। इस तोप के बारे में सुनते ही दूर बैठा दुश्मन भी कांप उठता है। आश्चर्य वाली बात यह है कि इसका इस्तेमाल आज तक नहीं हुआ, इसके पीछे एक बड़ी कहानी है।

यह है तोप का इतिहास

18वीं सदी में बनी यह तोप जयपुर के राजाओं के लिए ब्रह्मास्त्र से कम नहीं थी। ये तोप महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय के शासनकाल में युद्ध और सुरक्षा के लिए बनाई गई थी। इसे आमेर के पास जयगढ़ किले के डूंगर गेट पर रखा गया। इसके निर्माण के लिए सन् 1720 के आसपास एक विशेष कारखाना बनाया गया जहां लोहे गलाने से लेकर नाल सांचने की सभी प्रक्रिया वहीं हुई। कारखाने में अभी भी इसके प्रमाण मौजूद है। यह तोप इतना विशाल है कि इसे उठाने में हाथी भी थक जाता है। इस तोप की लंबाई 20.2 फीट है और इसका वजन 50 टन है और गतिशीलता के लिए दो पहियों पर स्थित किया गया लेकिन फिर भी इसे हिलाना बहुत मुश्किल है।

तोप में 100 किलोग्राम बारूद का हुआ उपयोग

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जयबाण तोप की टेस्टिंग के लिए 100 किलोग्राम बारूद और 50 किलोग्राम लोहे का इस्तेमाल किया गया था। टेस्ट इतना खतरनाक था कि वह गोला 35 किमी दूर जाकर गिरा, जहां एक गढ्ढा हो गया और बारिश के पानी से तालाब बन गया। इस तोप की खासियत है कि इसका इस्तेमाल कभी नहीं हुआ। अभी तोप को मौसम से बचाने के लिए इसके ऊपर एक टिन की छत का निर्माण किया गया है।

पर्यटकों के लिए मनपसंद स्थल

यह तोप अभी भी किले में सुरक्षित रखी गई है और आज तक एक भी जंग का दाग नहीं लगा। वैसे तो गुलाबी नगरी जयपुर में कई घूमने की जगह है लेकिन सबसे प्रसिद्ध जयबाण तोप है। इसे देखने के लिए यहां हजारों की संख्या में टूरिस्ट आते हैं। वह इसकी प्राचीनता व विशालता को देखकर खुश हो जाते है। विजयदशमी के दिन इस तोप की खास पूजा की जाती है।

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