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90 के दशक तक रखे जाते रहे हैं देशभक्तों के नाम से बच्चों के नाम

- अब नजर नहीं आते वे नाम- स्वतंत्रता दिवस के दिन जन्में और हो गए ‘आजाद’

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90 के दशक तक रखे जाते रहे हैं देशभक्तों के नाम से बच्चों के नाम

90 के दशक तक रखे जाते रहे हैं देशभक्तों के नाम से बच्चों के नाम

जैसलमेर. पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। केन्द्र और राज्य सरकारें, राजनीतिक पार्टियां और कई सारे संगठन-संस्थाएं इस कार्य में जुटी हैं। ऐसे में समाज में व्याप्त परिदृश्य पर अनायास ही नजर जाना स्वाभाविक है। यह परिदृश्य बच्चों के नामों से जुड़ा है। स्कूल-कॉलेजों में पढऩे वाले यानी मिलेनियम पीढ़ी (वर्ष 2000 या उसके बाद जन्में युवा और बच्चे) के नामों पर नजर दौड़ाएं तो अब लगभग नगण्य संख्या में मोहनदास, सुभाषचन्द्र, जवाहरलाल, चन्द्रशेखर, रामप्रसाद, जयप्रकाश, राममनोहर, दुर्गा, सरोज, कमला आदि नाम उनके रखे होंगे। कह सकते हैं कि, वह दौर बीत गया जब बड़े पैमाने पर लोगों के मन में आजादी के योद्धाओं के नाम पर अपनी नवजात संतानों का नामकरण करने का भाव हुआ करता था। आजकल के नामों में न तो आजादी की लड़ाई गांधीवादी तरीकों से लडऩे वालों का जिक्र है और न ही क्रांति के पथ पर चलने वालों का। यह हाल 1990 के दशक के बाद ही हुआ है। इससे पहले बहुतायत में ऊपर गिनाए गए आजादी के मतवालों व देश के नेताओं के नाम पर बच्चों का नामकरण करना बेतहाशा चलन में रहा है। और तो और जिन बच्चों की जन्मतिथि उस जमाने में ज्ञात नहीं होती थी, उनका नाम स्कूल में लिखवाते समय ‘माड्साब’ या कोई पढ़ा-लिखा रिश्तेदार अपने मन से 15 अगस्त, 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय पर्वों की तिथि जन्म के दिन के तौर पर अंकित करवा दिया करते थे।
‘आजाद’ नाम की कहानी
स्वतंत्रता दिवस पर जन्म लेने वाले बच्चों के नाम बड़े पैमाने पर ‘आजाद’ रखने का चलन जैसलमेर में भी खूब रहा है। हालांकि अब इसमें भी कमी देखी जा रही है। पूर्व में ऐसे नाम या तो मुख्य नाम अन्यथा उपनाम के तौर पर तो बड़ी संख्या में चलन में रहे हैं। आज भी ऐसे लोग 75 से 30-35 की वय तक मिल जाएंगे। जिनके उपनाम ‘आजाद’ हैं। अब यह रीत भी लगभग चलन से बाहर हो चुकी है क्योंकि प्रत्येक 15 अगस्त को भी आम दिनों की भांति बच्चों का जन्म होता है लेकिन स्कूल-कॉलेजों में पढऩे वाली मौजूदा पीढ़ी के नाम या उपनाम से ‘आजाद’ शब्द अब गायब हो चुका है। ऐसे ही 2 अक्टूबर को जन्में कई बच्चे ‘गांधी’ नाम से पुकारे जाते रहे हैं लेकिन मौजूदा समय में यह भी दुर्लभ है।
ऐसी है नामों की ‘रामकहानी’
समाजशास्त्रियों के अनुसार आजादी की लड़ाई और उसके बाद बच्चों का नामकरण स्वतंत्रता सेनानियों, देश के नेताओं व देवी-देवताओं के नाम पर किया जाना एक फैशन की तरह था। समय बदलने के साथ इस सबमें बदलाव आया और 1980 के दशक से ज्यादातर नामकरण फिल्मी कलाकारों पर होने लगा। उस पीढ़ी में ढेरों धर्मेंद्र, जितेंद्र, अमिताभ, संजीव कुमार, दिलीप कुमार, आशा, बबीता, लता, साधना, विनोद आदि मिलते हैं। ये लोग अधिकांशत: आज जीवन के चौथे या पांचवें दशक में हैं। नए दौर में फिल्मी कलाकारों के नाम पर कम लेकिन उनके व टीवी सीरियलों के किरदारों पर बच्चों का नामकरण ज्यादा होने लगा है। साथ ही दो अतियां साथ-साथ चल रही हैं। या तो नाम बेहद क्लिष्ट यानी संस्कृतनिष्ठ अथवा अंग्रेजी भाषा वाले होते हैं।

सोच-विचार में बदलाव का
बच्चों का नामकरण वैसे तो उनके अभिभावकों का पूर्णतया निजी मामला होता है लेकिन बदलता प्रचनल सोच-विचार तथा आदर्शों में बदलाव का तो माना ही जा सकता है। अभी आर्थिक उदारीकरण और भूमंडलीकरण का दौर है तो चीजें उसी तरह से आगे बढ़ रही हैं।
- मोहनलाल पुरोहित, शिक्षाविद