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आज अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक दिवस: नैतिक बल से ही रुकेगा भ्रष्टाचार

धन प्राप्ति के लिए अपराध, भ्रष्टाचार और निम्न स्तरीय षड्यंत्रों में लिप्त होते व्यक्तियों के बारे में समाचार पत्रों की खबरें पढकऱ मन व्यथित हो उठता है।

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धन प्राप्ति के लिए अपराध, भ्रष्टाचार और निम्न स्तरीय षड्यंत्रों में लिप्त होते व्यक्तियों के बारे में समाचार पत्रों की खबरें पढकऱ मन व्यथित हो उठता है। भ्रष्ट आचरण और अपराध से धनार्जन की प्यास तब जागती है जब व्यक्ति सब कुछ भूलकर सिर्फ धन और शक्ति को बढाने के लिए प्रतिबद्ध हो जाता है। उसे जीवन मूल्यों, परिवार की यश कीर्ति, पूर्वजों के गौरव, समाज की टीका टिप्पणियों से उपजने वाली जलालत से कोई सरोकार नहीं रह जाता। वैसे इसके लिए समाज की आम सोच भी कम उत्तरदायी नहीं है। उदाहरण के लिए 50 हजार मासिक वेतन पाने वाला व्यक्ति जब 50 लाख की गाड़ी में यात्रा करता है तो समाज उस पर अंगुली उठाने के बजाय प्रशंसा करने लगता है। बस, यही से भ्रष्टाचार का सामान्यीकरण प्रारम्भ हो जाता है। जब भ्रष्ट आचरण से कमाया जाने वाला धन योग्यता और कौशल समझा जाने लगे, तो समझ लीजिए कि समाज विस्फोटक मुहाने पर खड़ा है। तथाकथित रूप से सबसे उत्तम शिक्षण संस्थानों से सर्वोत्तम शिक्षा प्राप्त करने का दम रखने वालों का आचरण भी यदि पवित्र नहीं है तो क्या यह शिक्षण तंत्र की असफलता नहीं? क्या शिक्षा वर्तमान में नैतिक मूल्यों और जीवन जीने की कला को सिखा पा रही है? विचार करना चाहिए।व्यक्ति भ्रष्ट या अनैतिक आचरण करता ही क्यों है? वस्त्रहीन होने का भय उसी को होता है जो लज्जावान है, वस्त्र धारण किए हुए हैद्ध जो व्यक्ति पहले से ही वस्त्रहीन है उसे नग्नता से कैसा भय? यही सिद्धांत जीवन में भी लागू होता है। दरअसल हर व्यक्ति नैतिकता रूपी वस्त्र धारण करके ही अपना जीवन शुरू करता है। युवा होने के बाद भी वह नैतिकता रूपी वस्त्रों को नहीं छोड़ता क्योंकि उसे अपनी प्रतिष्ठा खोने अर्थात वस्त्रहीन होने का भय होता है। जो व्यक्ति अपने समस्त मूल्यों से समझौता करके मूल्यहीन हो चुका हो उसे अपनी प्रतिष्ठा अर्थात वस्त्र खोने का भय नहीं रहता। वैसे "जब सभी अनैतिक हैं तो मैं ही नैतिक क्यों बना रहूं" की सोच आते ही समस्या शुरू हो जाती है। वैसे दिखावटी ईमानदारी दिखाने वालों की तो आज भी कमी नहीं है। जो व्यक्ति अपनी अंतरात्मा से नैतिक मूल्यों का पालन करते हैं वे ही वास्तव में ईमानदार कहलाने के हकदार हैं। दरअसल भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए अंतर्मन को नैतिक मूल्यों की बूस्टर डोज देनी ही होगी। प्राचीन शास्त्रों ने वृत्तं यत्नेन संरक्षेत अर्थात चारित्रिक बल की यत्नपूर्वक रक्षा करने की बात कही गई है। ऊंचे पद पर पहुंच जाने पर या उच्च शिक्षित होने के बाद व्यक्ति को अपनी मर्यादा और नैतिकता का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि उन पर यह अतिरिक्त जिम्मेदारी है कि वे सामान्य जनों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करें। भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को रोकने के लिए युवाओं के आदर्श व्यक्तित्वों में बदलाव अपेक्षित है। युवाओं के आदर्श फिल्म स्टार या हिस्ट्रीशीटर नहीं बल्कि देश की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान करने वाले लोग, राष्ट्रभक्त व्यक्तित्व, वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता होने चाहिए। समाज को भी चाहिए कि वह नैतिक बल से पुष्ट व्यक्तियों को सबसे ज्यादा मान दे। नैतिक बल का जागरण मनुष्य जीवन का ध्येय होना चाहिए।