
कृषि विज्ञान केंद्र जैसलमेर के अध्यक्ष डॉ. दशरथप्रसाद ने बताया कि गुजरात के प्रगतिशील किसान अनिल संतानी और दिलीप गोयल ने वर्ष 2012 में लोहटा गांव में खुनेजी, बरही और खलास किस्मों के करीब 1500 खजूर के पौधे लगाए। शुरुआत में 1300 पौधों से प्रति पौधा 30 से 40 किलो उपज मिली। यह उपज 40 से 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचकर करीब 12 लाख रुपए की आय प्राप्त हुई, जिससे बमुश्किल लागत ही निकल पाई।
किसान ने 2018 में कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़कर प्रशिक्षण लिया और खजूर के प्रसंस्करण, ग्रेडिंग व पैकिंग की तकनीकें सीखीं। इसके बाद खजूर का मूल्य संवर्धन शुरू किया गया। अब वही उपज सजीव पैकेजिंग और गुणवत्तापूर्ण प्रस्तुतिकरण के साथ बाजार में बेची जा रही है, जिससे सालाना शुद्ध आय 23 लाख रुपये तक पहुंच गई है। साथ ही पौधों के सेंपल (सकर्स) बेचकर 3 से 4 लाख रुपए अतिरिक्त आय मिल रही है।
खजूर की खेती से अब स्थानीय लोगों को भी लाभ मिल रहा है। लोहटा के इस बगीचे में 10 से अधिक लोगों को स्थायी रोजगार मिला है। इसके अलावा खजूर की मांग राजस्थान सहित अन्य राज्यों में भी लगातार बढ़ रही है। ऑनलाइन माध्यमों से अच्छे दाम मिल रहे हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार खजूर का पौधा शुरुआत में मेहनत की मांग करता है, लेकिन एक बार तैयार होने के बाद यह 100 वर्षों तक उपज देता है। जैसलमेर की जलवायु इसके लिए उपयुक्त है, इसी कारण अब अन्य राज्यों के किसान भी इस क्षेत्र में रुचि ले रहे हैं।
शनिवार को कृषि विज्ञान केंद्र अध्यक्ष डॉ. दशरथप्रसाद, वैज्ञानिक डॉ. केजी व्यास, डॉ. रामनिवास और सुनील शर्मा ने खजूर बगीचे का भ्रमण किया और खेती में अपनाए गए नवाचारों की।
Published on:
27 Jul 2025 09:20 pm
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