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डायनासोर के जीवाश्मों पर अवैध खनन का मंडराता खतरा

सरहदी जैसलमेर जिला एक बाफिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। कारण है—मेघा गांव में डायनासोर के जीवाश्म का मिलना।

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सरहदी जैसलमेर जिला एक बाफिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। कारण है—मेघा गांव में डायनासोर के जीवाश्म का मिलना। करोड़ों वर्ष पुराने इन जीवाश्मों ने वैज्ञानिकों और शोधार्थियों की जिज्ञासा को नया आयाम दिया है, लेकिन इसके साथ ही एक गंभीर चिंता का विषय भी सामने आया है। चिंता यह है कि अवैध खनन के कारण इन दुर्लभ धरोहरों के नष्ट होने का खतरा बढ़ता जा रहा है।

जानकारों का कहना है कि जैसलमेर का भूगर्भीय क्षेत्र भारत में कच्छ-भुज के बाद वह दूसरा स्थान है, जहां डायनासोर के विकास और विनाश से जुड़ी फार्मेशन पाई जाती है। वर्ष 2014 में दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने जैसलमेर जिले के कई हिस्सों का दौरा कर जीवाश्मों पर शोध किया था। कुछ समय पहले थईयात क्षेत्र से डायनासोर के पैरों के निशान गायब होने की खबर भी आई थी, जिससे यह संदेह और गहरा हुआ कि या तो यह फुटप्रिंट चोरी हो गए या फिर नष्ट कर दिए गए।
पत्रिका पड़ताल में सामने आया है कि शहर से सटे पहाड़ी इलाकों व समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में जीवाश्मयुक्त लाइन स्टोन का अवैध खनन जोरों पर है। चोरी-छिपे निकाले जा रहे इन ब्लॉकों के कारण भूगर्भीय धरोहरें तेजी से नष्ट हो रही हैं। इसी तरह रूपसी, भादासर और आसपास के इलाकों में सेंड स्टोन की खदानें भूविज्ञान के अध्ययन में बाधक बन रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यह स्थिति भविष्य में पर्यटन की संभावनाओं को भी गहरा झटका दे सकती है। मरुस्थलीय जैसलमेर में मिले डायनासोर जीवाश्मों ने पहले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुचि जगाई थी। अनुसंधानों के बाद यहां अन्य संस्थानों और विश्वविद्यालयों की ओर से भी शोध की उम्मीदें बनी थीं। जानकारों के अनुसार यदि इन्हें सही ढंग से संरक्षित किया जाए तो यह क्षेत्र पर्यटन और विज्ञान दोनों दृष्टि से अनूठा आकर्षण बन सकता है, लेकिन अवैध खनन के चलते यह संभावना खतरे में है।

खनन विभाग की प्रतिक्रिया: लगातार कर रहे कार्रवाई

खनन विभाग का कहना है कि अवैध खनन रोकने के लिए लगातार कार्रवाई की जा रही है।विभागीय अभियंता घनश्याम चौहान के अनुसार अवैध खनन की शिकायतें मिलने पर विभाग ने हाल ही में कार्रवाई की है और जुर्माना राशि भी वसूली गई है। ऐसे मामलों पर विभाग गंभीर और सख्त है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि केवल जुर्माना या छिटपुट कार्रवाई काफी नहीं है। जरूरत है ठोस नीति, कड़े प्रबंधन और वैज्ञानिकों के सहयोग से संरक्षण योजना की। क्योंकि यदि करोड़ों वर्ष पुरानी यह धरोहर एक बार नष्ट हो गई, तो फिर कभी वापस नहीं लाई जा सकेगी।