
पारम्परिक ओरण-गोचर जमीनों को राजस्व रिकॉर्ड में इसी श्रेणी में दर्ज करवाने की मांग को लेकर जिले के पर्यावरण प्रेमियों ने मंगलवार को गजरूपसागर से कलेक्ट्रेट तक 5 किलोमीटर से लम्बा पैदल मार्च निकाला। हाथों में तिरंगा और केसरिया ध्वजाओं के साथ अपनी मांगों से संंबंधित तख्तियां थामे ग्रामीणों ने शहर के मुख्य मार्गों को नारेबाजी से गूंजा दिया। कलेक्ट्रेट पहुंचने के बाद उन्होंने अतिरिक्त कलक्टर को मुख्यमंत्री के नाम अपनी मांगों से संबंधित ज्ञापन सौंपा। जिसमें मुख्य रूप से जिले में 20 जमीनों को ओरण-गोचर के रूप में राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करवाने संबंधी फाइलों के निस्तारण की मांग की। आंदोलनकारियों ने कहा कि प्रशासन की तरफ से ओरण संरक्षण के संबंध में कोई बात नहीं सुनी गई है, ऐसे में नाराज होकर ग्रामीणों ने बाद में कलेक्ट्रेट के सामने अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया। पैदल मार्च में बड़ी संख्या में विभिन्न गांवों से आए लोग शामिल हुए। कलेक्ट्रेट पहुंचने से पहले मार्ग में पदयात्रियों ने ट्रांसपोर्ट चौराहा स्थित भाजपा कार्यालय पहुंच कर जिलाध्यक्ष दलपत हींगड़ा को ज्ञापन सौंपा।
पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह सांवता ने कहा कि कम्पनियों के काम रातोरात हो जाते हैं। जिले में हजारों-लाखों बीघा जमीन कम्पनियों को दे दी गई है। जिसमें हमारे पूर्वजों की तरफ से सौंपी गई ओरण-गोचर, तालाब, कुएं, बावडिय़ां आदि भी शामिल हैं। वहीं प्रशासन हमारी मांगों पर कोई कार्यवाही नहीं कर रहा है। ओरण-गोचर संबंधी 20 प्रकरण हमारी तरफ से सौंपे गए हैं। इनमें पटवारी से लेकर उपखंड अधिकारी तक की रिपोर्ट शामिल है। इसके बावजूद उन फाइलों को सरकार तक नहीं पहुंचाया जा रहा है।
कलेक्ट्रेट पहुंचने के बाद पर्यावरण प्रेमियों ने अतिरिक्त कलक्टर को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में ओरण व गोचर भूमि को अतिक्रमण और खनन गतिविधियों से बचाते हुए इन्हें तत्काल राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करवाने की मांग प्रमुखता से की गई है। पर्यावरण प्रेमियों ने कहा कि जब तक इन जमीनों और पारंपरिक जलस्रोतों को राजस्व रिकॉर्ड में उसी रूप में दर्ज नहीं किया जाएगा, तब तक वे सुरक्षित नहीं रहेंगी।
कलेक्ट्रेट में उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि जब पूर्ववर्ती सरकार ने ग्रामीणों की मांग पर ओरण दर्ज किए थे तो वर्तमान सरकार से ऐसा करवाने के लिए उसके प्रतिनिधि मौन क्यों हैं? जिला प्रशासन से ठोस आश्वासन नहीं मिलने की बात कहते हुए वक्ताओं ने कहा कि धरने से लेकर बेमियादी अनशन तक के कदम उठाए जाएंगे। पर्यावरण प्रेमियों ने कहा कि ओरण और गोचर केवल पशुओं के चरागाह ही नहीं, बल्कि पर्यावरण व वन्यजीवों की शरणस्थली भी हैं। समय रहते इनका संरक्षण नहीं किया गया तो जैसलमेर की पारिस्थितिकी गहरे संकट में पड़ सकती है। सांवता ने कहा कि हमारी ओर से धरना शुरू किया गया है और हमें उम्मीद है कि जिस तरह से पिछली सरकार ने हमारे संघर्ष के बाद मांग को माना था, वैसे ही मौजूदा सरकार भी आवश्यक कदम उठाएगी।
Published on:
16 Sept 2025 08:58 pm
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