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सात समंदर पार के पावणों को भी सता रही जैसाण की याद

locationजैसलमेरPublished: Nov 30, 2020 01:41:32 pm

Submitted by:

Deepak Vyas

– विदेशी लगातार स्थानीय गाइडों के सम्पर्क में- एक दूसरे के जान रहे हालचाल- फिलहाल अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर है रोक

सात समंदर पार के पावणों को भी सता रही जैसाण की याद

सात समंदर पार के पावणों को भी सता रही जैसाण की याद

जैसलमेर. कोरोना महामारी के कारण अंतरराष्ट्रीय विमान सेवा ठप होने के चलते बड़ी तादाद में दुनियाभर से आने वाले सैलानियों का फिलहाल जैसलमेर आगमन संभव नहीं है। ऐसे में जैसलमेर के विदेशी पर्यटन से सीधे जुड़े गाइड, टूर ऑपरेटर, होटल और रिसोर्ट संचालक तो मायूस हैं ही, खुद विदेशी सैलानी भी कम दु:खी नहीं हैं। उन्हें विश्व की प्राचीनतम सभ्यता-संस्कृति वाले भारत तथा रंग-रंगीले राजस्थान के साथ पीत पाषाणों से निर्मित ऐतिहासिक जैसलमेर शहर की याद खूब सता रही है। वे अपने हृदयोद्गार उनके मित्र बन चुके स्थानीय गाइडों के सामने नियमित रूप से प्रकट करते हैं। कुछ विदेशी तो कहते है कि, जैसलमेर और भारत उनके सपनों में आता है। वे कहते हैं कि, जल्द से जल्द भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय विमान सेवा पर लगी पाबंदी हटाए तो वे भारत भ्रमण पर आएं। ये विदेशी ऐसे हैं जो एक-दो नहीं, कई-कई बार भारत यात्रा कर चुके हैं। इसमें भी जैसलमेर से तो उनका खास नाता जुड़ चुका है।
लेते हैं खैर-खबर
विदेशी सैलानी और वहां के टूर लीडर वगैरह जैसलमेर स्थित गाइडों व टूर ऑपरेटर्स से फोन पर नियमित रूप से जैसलमेर सहित भारतभर की जानकारी ले रहे हैं। जैसलमेर के विदेशी भाषा में निपुण गाइड संजय वासु, गजेन्द्र शर्मा और तनसिंह सिसोदिया ने बताया कि वे कोरोना महामारी की यहां व्याप्त स्थितियों के बारे में पूछते हैं और अपने देश के हालात से अवगत करवाते हैं। जर्मनी की सोंजा, ऑस्ट्रिया के सिगरिड और कार्ल, इटली के मेटियो, बेल्जियम की वर्निका तथा फ्रांस की केरोलिन जैसे तमाम यूरोपियन बताते हैं कि, उन्हें जैसलमेर में बिताया गया समय बहुत याद आता है। वे बार-बार यहां की यात्रा करना चाहते हैं। इनमें से कोई चार-पांच तो कोई दस बार भारत भ्रमण पर आ चुके हैं। उनके मुताबिक जैसलमेर का शांत-सुकूनभर वातावरण, रेत का सागर, ऐतिहासिक दुर्ग तथा वहां की तंग गलियां और पुरानी जीवंत सभ्यता बहुत याद आती है।
पुराना है जैसलमेर से रिश्ता
विदेशी सैलानियों का जैसलमेर से खास रिश्ता 1970 के दशक से बना और धीरे-धीरे प्रगाढ़ होता गया। शुरुआती दौर में फ्रांस से इंजीनियर यहां तेल-गैस खोज कार्य में मदद के लिए आए। फिर उन्होंने जब जैसलमेर देखा तो उनकी प्रेरणा से अनेक लोग यहां आना शुरू हो गए। धीरे-धीरे उनकी संख्या हजारों और अब प्रति एक-सवा लाख तक पहुंच गई है। मार्च के दूसरे पखवाड़े में कोरोना की वजह से लॉकडाउन लग जाने के कारण भारत से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर रोक लग जाने से आठ महीनों से कोई विदेशी यहां नहीं आया। जैसलमेर के विदेशी दोस्त बेसब्री से सबकुछ ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे पहले की तरह महान देश भारत आकर मरुस्थलीय जैसलमेर की यात्रा कर सकें।
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