
मरुस्थल की रेत पर सरहदी व दूरस्थ गांवों पानी के लिए लड़ी जा रही है। सूरज की पहली किरण के साथ गांवों में पानी की तलाश शुरू हो जाती है। न नल में पानी, न कुओं में जल। टैंकर कभी आते हैं, कभी नहीं। ऐसे में हर सुबह ग्रामीण महिलाओं और बच्चियों के लिए संघर्ष की शुरुआत होती है—मटके सिर पर, तपती राहों पर, कई किलोमीटर की यात्रा केवल एक घूंट जीवन के लिए। भीषण गर्मी में इन क्षेत्रों में हैंडपंप सूख चुके हैं और सार्वजनिक टांके खाली पड़े हैं। टैंकरों की निर्भरता बढ़ी है, लेकिन वे भी नियमित नहीं पहुंचते। कई जगहों पर हफ्तों से टैंकर नहीं आए, जिससे लोगों में नाराजगी है।
डेलासर की रमीला देवी बताती है हर दिन तीन-चार घंटे पानी भरने में लगते हैं। सुबह का खाना भी समय पर नहीं बनता। बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है। रामगढ़ क्षेत्र निवासी भूराराम विश्नोई कहते हैं हमारे गांव में दो हफ्ते से टैंकर नहीं आया। एक कुएं में थोड़ा पानी बचा है, उस पर पूरा गांव निर्भर है। झगड़े की नौबत आ जाती है। नहरी क्षेत्र की मंगली देवी कहती हैं— लाइन तो है, लेकिन पानी नहीं आता। हर बार शिकायत करते हैं, लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं मिल रहा।
जिम्मेदारों की ओर से सीमित संसाधनों में आपूर्ति की जा रही है, लेकिन गर्मी बढऩे से संकट और गहरा गया है। ग्रामीणों की मांग है कि इंदिरा गांधी नहर परियोजना से जुड़ी पाइपलाइन हर गांव तक पहुंचाई जाए और पुराने तालाबों, टांकों का पुनरोद्धार किया जाए।
जानकारों के मुताबिक जैसलमेर को टूरिज्म के नाम पर पहचान मिली है, लेकिन यहां के मूल निवासी आज भी पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता के लिए संघर्षरत हैं। यह समस्या केवल गर्मी की नहीं, बल्कि नीति और नियत की भी है।
Published on:
13 Apr 2025 09:53 pm
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