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भू-जल वैज्ञानिक को मिला अंडे का फोसिल, जैसलमेर की पहाड़ियों में हुई नए जीवाश्म की खोज

जिले के समीप गजरूप सागर क्षेत्र में पहाड में एक अंडे का जीवाश्म मिला है।

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जैसलमेर। जिले के समीप गजरूप सागर क्षेत्र में पहाड में एक अंडे का जीवाश्म मिला है। भू-जल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इणखिया ने बताया कि उन्हें मेघवाल समाज के भीम कुंज पहाड़ी क्षेत्र में भ्रमण के दौरान यह एग फॉसिल मिला है। उन्होंने बताया कि पहले भी इस क्षेत्र में डायनासोर के जीवाश्म मिल चुके हैं। कुछ वर्ष पूर्व भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वे और आइआइटी की टीम ने यहीं पर डायनासोर के जीवाश्म खोजे थे। इणखिया के अनुसार यह किस प्रजाति का है, यह अनुसंधान का विषय है। उन्होंने बताया कि भू-वैज्ञानिक कालक्रम के अनुसार डायनासोर या उस काल के किसी जीव का यह एग जीवाश्म हो सकता है।

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उन्होंने बताया कि अब वे इस अंडे की जयपुर स्थित जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की जीवाश्म विज्ञान की लैबोरेटरी में जांच करवाएंगे। जांच के बाद ही साफ हो सकेगा कि भू वैज्ञानिक काल क्रम के अनुसार ये भू अंडा डायनासोर या उस काल के किसी जीव का है या नहीं। जैसलमेर की जेठवाई- गजरूप सागर इलाके की पहाड़ियों में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) के वैज्ञानिकों ने 2018 में रिसर्च शुरू किया था। इस टीम में वैज्ञानिक देबाशीष भट्टाचार्य, कृष्ण कुमार, प्रज्ञा पांडे और त्रिपर्णा घोष शामिल थीं। जिले के जेठवाई गांव की पहाड़ियों में रिसर्च के दौरान सबसे पुराने शाकाहारी डायनासोर थारोसोरस के जीवाश्म मिले थे। सबसे ज्यादा डायनासोर की रीढ़, गर्दन, सूंड, पूंछ और पसलियों के जीवाश्म मिले थे। थार रेगिस्तान में मिले डायनासोर के जीवाश्म को 'थारोसोरस इंडिकस ' यानी भारत के थार का डायनासोर नाम दिया गया है।

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थारोसोरस से पहले चीन में मिले डायक्रेओसोराइड के जीवाश्म को सबसे पुराना समझा जाता था। वह 16.6 करोड़ से 16.4 करोड़ साल पुराना था। भारत में हुई ताजा खोज ने चीन के जीवाश्म को 10 से 30 लाख साल पीछे छोड़ दिया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन सभी खोजों को जोड़ कर देखें तो पक्के सबूत मिलते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप डिप्लोडोसॉइड डायनोसोरों की उत्पत्ति और उनके क्रमिक विकास का केंद्र था।