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रेत में रचा ज्ञान का धाम…. भादरिया महाराज ने शुरू की थी पहल, बना एशिया के बड़े पुस्तकालयों में एक

थार के तपते रेगिस्तान में इस दिन का वास्तविक अर्थ भादरिया गांव में महसूस किया जा सकता है, जहां एक संत ने चार दशक पहले ज्ञान की अलख जगाई थी। उसी संकल्प का परिणाम है भादरिया पुस्तकालय, जो आज एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में गिना जाता है।वर्ष 1981 में भादरिया महाराज के नाम से प्रसिद्ध संत हरवंशसिंह निर्मल ने भादरियाराय माता मंदिर परिसर में विशाल धर्मशाला, भवनों और पुस्तकालय की नींव रखी। तब से आज तक यह स्थान ज्ञान साधना का केंद्र बना हुआ है।

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गुरु पूर्णिमा आत्मबोध और ज्ञान के प्रति श्रद्धा का पर्व है। सच्चा गुरु वही है, जो आने वाली पीढिय़ों को प्रकाश का मार्ग दिखाए, वह भी तपते धोरों के बीच। थार के तपते रेगिस्तान में इस दिन का वास्तविक अर्थ भादरिया गांव में महसूस किया जा सकता है, जहां एक संत ने चार दशक पहले ज्ञान की अलख जगाई थी। उसी संकल्प का परिणाम है भादरिया पुस्तकालय, जो आज एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में गिना जाता है।वर्ष 1981 में भादरिया महाराज के नाम से प्रसिद्ध संत हरवंशसिंह निर्मल ने भादरियाराय माता मंदिर परिसर में विशाल धर्मशाला, भवनों और पुस्तकालय की नींव रखी। तब से आज तक यह स्थान ज्ञान साधना का केंद्र बना हुआ है। यहां लाखों दुर्लभ पुस्तकें संग्रहित हैं, जिनकी कीमत एक करोड़ से अधिक आंकी गई है। उद्देश्य था - हर वर्ग, धर्म और विषय से संबंधित साहित्य को एक ही स्थान पर उपलब्ध करवाना, जिससे जिज्ञासुओं को अन्यंत्र न भटकना पड़े। पुस्तकालय के लिए दो विशाल भवन बनाए गए हैं। एक में अध्ययन कक्ष है, जिसमें एक साथ चार हजार लोग बैठ सकते हैं। दूसरा भवन पुस्तक भंडारण के लिए है। यहां 562 अलमारियों में लाखों पुस्तकें रखी गई हैं। गैलरियों की लंबाई 275 से 370 फीट तक है और 16 हजार फीट की रेंक भी तैयार की गई है। यहां 11 में से 7 धर्मों का साहित्य, वेद-पुराण, उपनिषद, भारत और विश्व के संविधान, एनसाइक्लोपीडिया, कानून, आयुर्वेद, स्मृतियां, शोध ग्रंथ, भाषण और दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद हैं। संरक्षण के लिए 18 कक्षों में माइक्रो सीडी बनाकर संग्रहण किया जा रहा है।