विदेशी पक्षी तिलोर को रास आई मरुभूमि
जैसलमेरPublished: Nov 29, 2020 07:40:07 pm
– पाकिस्तान में आज भी किया जाता है शिकार- गत दिनों चार तिलोर सीमा सुरक्षा बल ने पकड़े थे सरहद पर
विदेशी पक्षी तिलोर को रास आई मरुभूमि
लाठी/जैसलमेर. सात समंदर पार से अब तिलोर भी मरुप्रदेश पहुंचने लगा है। इस विदेशी पक्षी को सरहदी जिले जैसलमेर की आबोहवा रास आने लगी है। जैसलमेर सरहद से सटे पाकिस्तान और उसके क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों में आज भी तिलोर का शिकार किया जाता हैं। भारत में वैसे तो तिलोर का थार के रेगिस्तानी इलाकों में सर्दी ऋतु के आगमन के साथ ही आना शुरू हो जाता हैं, लेकिन गत वर्ष से लेकर अब तक 4 तिलोर ऐसे देखे गए हैं, जिनके पांवों में रंगीन छल्ले पहने थे। इस कारण इन्हें सीमा सुरक्षा बल के चौकस जवानों ने पकड़कर स्थानीय पुलिस और वन विभाग को सौंप दिया था। इन चारों तिलोर को माचिया स्थित जैविक उद्यान में रखा गया हैं। भारत में ये जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर और बाड़मेर जिलों के सीमावर्ती रेगिस्तानी इलाकों में इनका सर्द मौसम में आगमन रहता हैै। स्थानीय वन्य जीव प्रेमी व सामुदायिक गोडावण संरक्षण प्रोग्राम के एक कार्यकर्ता राधेश्याम पैमानी विश्नोई मुख्य रूप से तिलोर और गोडावण के विचरण स्थल व संख्या पर आंकड़े जुटा रहे है।
सरहद पर मिले छल्लों वाले तिलोर का रहस्य
विगत कुछ वर्षों से थार मरुस्थल में सामुदायिक गोडावण संरक्षण परियोजना से जुड़े स्थानीय पक्षी प्रेमी और वन्यजीव स्वयंसेवक भी जैसलमेर जिले में तिलोर के आगमन, विचरण और पुन: प्रस्थान पर आंकड़े जुटा रहे हैं। इन छलों वाली तिलोर के सिलसिले में पड़ताल के दौरान पुलिस को की ओर से जब संपर्क किया गया तो ईआरडीएस फाउंडेशन संस्थान से जुड़े वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. सुमित डूकिया ने अबु धाबी स्थित हुबारा केंद्र से संपर्क किया। वहां के अधिकारियों ने अवगत कराया कि पिछले वर्ष से लेकर अब तक लगभग 3500 तिलोर पक्षियों को मार्च और सितंबर महीने में रेगिस्तानी इलाकों में छोड़ा गया था। वर्ष 1986 से संयुक्त अरब अमीरात के इसी अबु धाबी वाले केन्द्र ने वर्ष 2015 में एक साथ 50,000 हुबारा पक्षियों को स्वतंत्र किया था। यह दुनिया का सबसे बड़ा हुबारा कृत्रिम प्रजनन केद्र हैं। आईएफएचसी के अनुसार तिलोर या हुबारा बस्टर्ड के घटने का मुख्य कारण अवैध शिकार हैं।
मुख्य बातें:-
आवास व व्यवहार: मिश्र के सिनाई से कजाकिस्तान व मंगोलिया तक
– तिलोर या मैक्वीन बस्टर्ड, गोडावण परिवार का एक मध्यम आकार का शीत प्रवासी पक्षी है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के शुष्क इलाकों में सर्द ऋतु में प्रवास पर आता हैं।
– यह एशिया के रेगिस्तानी और शुष्क पठारी क्षेत्रों का मूल पक्षी है, जो मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप से कजाकिस्तान और पूर्व में मंगोलिया तक आमतौर पर विचरण करता है।
– इससे पूर्व 19वीं शताब्दी मे ग्रेट ब्रिटेन तक इन्हें देखा जा सकता था।
– एक अध्यनन के अनुसार इनकी संख्या में कमी का प्रमुख कारण मुख्य रूप से शिकार और बड़े स्तर पर भूमि उपयोग में परिवर्तन हैं।
– वर्ष 2004 तक इनकी वैश्विक आबादी में 20 से 50 फीसदी की कमी देखी गई है।
– वर्ष 2003 में हुए अनुवांशिक शोध में इनको साधारण हुबारा बस्टर्ड से अलग किया गया और अब ये हुबारा बस्टर्ड की एक उपप्रजाति मैकक्वीन बस्टर्ड या एशियन हुबारा के रूप में जानी जाती हैं।
– सदियों से इनका शिकार पारंपरिक रूप से पालतू बाज़ की ओर से किया जाता रहा हैं। अरब देशों के धनाढ्य लोग भी इसका शिकार करते हैं।
– तिलोर की लगातार घटती संख्या को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने वर्ष 1970 में कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रयास शुरू करवाए।
– राजधानी अबु धाबी में इंटरनेशनल फंड फॉर हुबारा कंजर्वेशन, नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान का गठन कर संरक्षण के प्रयास किए।
– 1986 में सऊदी अरब में एक सहित कुछ बंदी प्रजनन सुविधाएं बनाई गई थीं और 1990 के दशक के उत्तरार्ध से कृत्रिम प्रजनन में सफलता मिलने लगी।
– शुरुआत में जंगली और बाद में पूरी तरह से कृत्रिम गर्भाधान का उपयोग करके इनकी संख्या में बढ़ोतरी की गई।
– बसंत में प्रजनन के बाद, एशियाई हुबारा दक्षिण में पाकिस्तान, अरब प्रायद्वीप और पास के दक्षिण पश्चिम एशिया में सर्दियों में बिताने के लिए पलायन करते हैं।