
ज्वालामुखी से निकला लावा तो बनी खेतोलाई में अनूठी भू-संरचना
खेतोलाई (जैसलमेर). 'आई लव खेतोलाईÓ सरहदी जैसलमेर जिले के पोकरण क्षेत्र के गांव खेतोलाई को लेकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के शब्दों में छिपी भावना को समझा जा सकता है, जहां परमाणु परीक्षण हुआ और जहां से भारत की शक्ति की गूंज देश-दुनिया ने सुनी। पत्रिका पड़ताल में यह बात सामने आई है कि परमाणु परीक्षणों के बाद मशहूर हुई खेतोलाई की मरुधरा कई मायनों में सबसे उपयुक्त परीक्षण स्थल था। जैसलमेर का कम जनसंख्या घनत्व इसमें एक बड़ा कारण रहा। आस पास में कई किलोमीटर तक मानव की आवाजाही न होना, बालू रेत की परत भी परीक्षण के उपयुक्त थी। केर, बेर जैसी झाडिय़ों की बाहुल्यता यहां होने वाली गतिविधियों को ढकने का काम कर रही थी। इन्ही कारणों से वजह से पोकरण फिल्ड फायरिंग रेंज के इस हिस्से को परमाणु परीक्षण के लिए चुना गया था। भू-जल वैज्ञानिक डॉ. एनडी इणखिया बताते हैं कि इन सबके बीच सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण यहां की धरती की अंदरूनी सरंचना का उपयुक्त होना भी रहा। पोकरण और खेतोलाई से लगते पोकरण फिल्ड फायरिंग रेंज का पूरा भू-भाग भू-विज्ञान के अनुसार मालाणी रायोलाइट फार्मेशन यानि पत्थर से बना है। रायोलाइट चट्टानें भू-विज्ञान के अनुसार 'वोल्केनिक शैलÓ है, जो ज्वालामुखी के विस्फोट से बनती है। ज्वालामुखी से निकला लावा जब धरती की सतह पर फैल कर ठंडा होता है, तब इस तरह की चट्टानें बनती है। धरती की सतह पर लावे के फैलने से यह ठंडा जल्दी होता है। बनने वाली चट्टान भी बारीक कणों वाली होती है और इसमें छिद्र नहीं होते है। इस वजह से इन चट्टानों में पानी या किसी अन्य तरल का संचरण नहीं होता है। रायोलाइट चट्टानों का यह गुण परमाणु परीक्षण के लिए सबसे उपयुक्त माना गया। परमाणु विस्फोट के बाद रेडियो एक्टिव विकिरण या उससे निकला तरल आगे नहीं फैले, इसके लिए ये सबसे उपयुक्त अंदरूनी सरचना थी। खेतोलाई की इस धरा में इन्ही रायोलाइट चट्टानों के कारण ही पानी नहीं है।
फैक्ट फाइल-
-23 वर्ष पहले पोकरण क्षेत्र में किए गए थे सिलसिलेवार परमाणु परीक्षण
-5 परमाणु बमों का परीक्षण किया गया था वष 1998 में
-11 मई को दो व 13 मई को तीन हुए थे परमाणु परीक्षण
-1974 में देश में हुआ था पहला परमाणु परीक्षण
-८० किलोमीटर जिला मुख्यालय से दूर है खेतोलाई गांव
एक्सपर्ट व्यू: भूमिगत पानी न होने से अनुकूल स्थिति
भूमिगत पानी का नहीं होना भी परमाणु परीक्षण के अनुकूल रहा। रेडियो एक्टिव विकिरण पानी के सहारे भी फैल सकता था। इस आशंका को भी समाप्त करने के लिए यहां की धरती में पानी नहीं होना आवश्यक था। चट्टानों ने परमाणु परीक्षण करने वाले वैज्ञानिकों की इस दुविधा का भी समाधान कर दिया। परमाणु परीक्षण के लिए खेतोलाई की धरा का चयन का प्रमुख कारण यहां की भू-संरचना रहा। इसी के बाद विश्व भर में खेतोलाई ओर पोकरण विख्यात हुए और जैसलमेर की मरुधरा को गौरव की अनुभूति हुई।
Published on:
30 Jul 2021 06:03 pm
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