
देश और दुनिया में जैसलमेर का नाम अगर आज पर्यटन के लिहाज से स्वर्णिम बना हुआ है तो उसमें सम क्षेत्र के मखमली रेत के धोरों के अहम योगदान से कोई इनकार नहीं कर सकता। साल भर में करीब 10 लाख देशी-विदेशी सैलानी इन धोरों पर भ्रमण करने और रेगिस्तानी पर्यावरण का जायजा लेने पहुंचते हैं। करीब 150 रिसोट्र्स व कैैम्प्स सम क्षेत्र में आबाद हैं, जहां पर्यटन सीजन के दिनों में एक रात में 10 हजार से ज्यादा लोगों के ठहरने की व्यवस्था है। इन सब तथ्यों के बावजूद शासन और प्रशासन आज तक सम सेंड ड्यून्स तक मीठे पानी की व्यवस्था नहीं कर पाया है। सम सेंड ड्यून्स पर रिसोट्र्स तक पाइप लाइन बिछा कर उन्हें जल कनेक्शन देने के लिए इंदिरा गांधी नहर परियोजना की बाबा रामदेव शाखा की 193 आरडी से करीब 27 किलोमीटर लम्बी लाइन बिछाने की दरकार है। जिस पर करीब 18 करोड़ रुपए तक खर्च आने का अनुमान लगाया जा रहा है। रिसोट्र्स में सीजन के दिनों में रोजाना करीब 6 लाख लीटर पानी की जरूरत का हिसाब लगाया गया है। हालांकि सम गांव तक नहरी पानी की जो लाइन जा रही है, वह सेंड ड्यून्स से होकर ही गुजर रही है लेकिन जलदाय विभाग के जिम्मेदारों का कहना है कि इस लाइन से रिसोट्र्स आदि को कनेक्शन नहीं दिए जा सकते क्योंकि यह 4000 की आबादी के लिए नियमानुसार दिए जा सकते हैं और चूंकि कागजों में सम सैंड ड्यून्स पर आबादी का निवास नहीं है इसलिए यह तकनीकी नुक्ता आड़े आ रहा है।
- सम सेंड ड्यून्स पर सीजन के दौरान लाखों सैलानी भ्रमण करने पहुंचते हैं और वहां बने करीब 150 रिसोट्र्स में हजारों पर्यटक रात बिताते हैं।
- हर साल सम क्षेत्र में लगभग 15-20 नए रिसोट्र्स या कैम्प्स का निर्माण होता है।
- इन रिसोट्र्स में जलापूर्ति की व्यवस्था वर्तमान समय में टे्रक्टर्स से टंकियां खरीद कर करनी पड़ती है।
- यहां बिजली की नियमित आपूर्ति भी सुनिश्चित नहीं की गई है। यहां वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को डिस्कॉम ग्रामीण क्षेत्रों या कृषि कार्य के लिए दी जाने वाली बिजली की तर्ज पर सप्लाई करता है।
- सम क्षेत्र में रिसोट्र्स का सालाना कारोबार 300 करोड़ से तक हो चुका है।
- पूर्व में सेंड ड्यून्स क्षेत्र में व्यवसाय कर रहे रिसोट्र्स के लिए वाणिज्यिक जल कनेक्शन जारी किए जाने का सैद्धांतिक निर्णय ले लिया गया था। लेकिन इसका क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है।
सम सैंड ड्यून्स घूमने आने वाले सैलानियों के बीच केमल सफारी का आकर्षण आज भी सिर चढ़ कर बोलता है और इसी वजह से एक हजार से भी ज्यादा रेगिस्तान के जहाज यानी ऊंटों का भरण-पोषण होता है। मीठा पानी नहीं मिलने पर ऊंटों को उनके पालक फ्लोराइडयुक्त पानी पिलाने लिए विवश बने हुए हैं। जबकि जलदाय विभाग कई साल पहले इस क्षेत्र के सम, कनोई व सलखा तक नहर का मीठा पानी पहुंचा चुका है।
जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग जल जीवन मिशन के तहत नल कनेक्शन उन्हीं गांवों में जारी कर सकता है, जहां कम से कम चार हजार की आबादी निवास करती हो। यह नियम छितरी आबादी वाले जैसलमेर जिले के लिए उचित नहीं है। वहीं सम सेंड ड्यून्स पर तो पर्यटन सीजन के दौरान ऊंट चालकों, लोक कलाकारों, रिसोट्र्स में काम करने वालों को मिला कर गिना जाए तो उनकी संख्या आसानी से तीन-चार हजार तक पहुंच जाती है। इसके अलावा रिसोट्र्स में सीजन के दौरान प्रतिदिन 5 से 10 हजार तक सैलानी ठहरते हैं। व्यावहारिक तौर पर सोचा जाए तो आबादी संबंधी विभागीय नियम की पूर्ति हो रही है।
- 10 लाख करीब सैलानी प्रतिवर्ष पहुंचते हैं सम
- 150 के आसपास रिसोट्र्स व कैम्प्स सम क्षेत्र में
- 300 करोड़ का सालाना व्यवसाय सम क्षेत्र में
जरूरी है जल व्यवस्था
सम सेंड ड्यून्स क्षेत्र में पर्यटन से हजारों लोगों को रोजगार मिलता है और यहां बड़ी संख्या सैलानियों की आवक से देश-दुनिया में जैसलमेर का नाम आगे बढ़ रहा है। सरकारों को मिलने वाला राजस्व भी कम नहीं है। इसके बावजूद पीने के पानी की व्यवस्था की वर्षों पुरानी मांग पूरी नहीं हो पा रही है।
- कैलाश व्यास, अध्यक्ष, रिसोट्र्स एंड कैम्प्स वेलफेयर सोसायटी, सम
Published on:
22 Apr 2024 07:48 pm
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