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Chandra Grahan 2023: शरद पूर्णिमा पर चंद्रग्रहण का साया, इन राशियों पर पड़ेगा प्रभाव, भूलकर भी न करें ये काम

Chandra Grahan 2023: आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा शनिवार 28 अक्टूबर को खण्डग्रास चन्द्रग्रहण रहेगा। ग्रहण भारतीय समय से विरल छाया प्रवेश रात्रि 11.32 बजे से विरल छाया निर्गम रात्रि 3. 53 बजे तक होगा। पंडित भानुप्रकाश दवे ने बताया कि ग्रहण का स्पर्श रात्रि 1.05 बजे से मोक्ष रात्रि 2:23 बजे तक रहेगा।

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Sharad Purnima 2023: आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा शनिवार 28 अक्टूबर को खण्डग्रास चन्द्रग्रहण रहेगा। ग्रहण भारतीय समय से विरल छाया प्रवेश रात्रि 11.32 बजे से विरल छाया निर्गम रात्रि 3. 53 बजे तक होगा। पंडित भानुप्रकाश दवे ने बताया कि ग्रहण का स्पर्श रात्रि 1.05 बजे से मोक्ष रात्रि 2:23 बजे तक रहेगा। खण्डग्रास चन्द्रग्रहण 1 घंटा 18 मिनट का रहेगा, लेकिन चन्द्रग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले शाम 4. 05 बजे से प्रारंभ होगा। चन्द्रग्रहण अश्विनी नक्षत्र एवं मेष राशि पर हो रहा है इसलिए इन राशि व नक्षत्र वालों को औषधियुक्त जल से स्नान करने पर इष्ट फल की प्राप्ति होगी।

ग्रहण का राशि प्रभाव
- मेष, वृषभ, कन्या, मकर के लिए नेष्ट अशुभ।
- सिंह, तुला, धनु, मीन के लिए सामान्य मध्यम।
- मिथुन, कर्क, वृश्चिक, कुंभ के लिए शुभ सुखद ***** रहेगा।
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चन्द्रग्रहण औषधि स्नान निर्णय
चन्द्रग्रहण के समय इष्ट फल की प्राप्ति के लिए जल में शमी,कमल,तिल, केसर, सरसों, दूर्वा, नागकेसर से स्नान करना चाहिए।

चन्द्रमा से ही कालचक्र का निर्धारण
भारतीय ज्योतिष में हिन्दू पंचांग चान्द्रमास से ही बनाया जाता है। सारे तीज़- त्यौहार इसी से तय होते हैं। भारतीय विद्वानों ने चन्द्रमा के आधार पर ही दिन,पक्ष,माह और साल की गणना की। यह सब मूल ज्योतिष तत्व के शुद्ध गणित का ही परिणाम है।
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ग्रहण में ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें
1. ग्रहण से पहले एवं ग्रहण के उपरांत स्नान के समय विवाहित महिलाओं को केश नहीं धोने चाहिए।
2. ग्रहण में मंत्र-जप के समय पवित्रता के लिए मस्तिष्क पर कुशा रखनी चाहिए।
3. चन्द्रग्रहण के ग्रसित होने से पूर्व स्नान करें, ग्रसित होने पर हवन( केवल शाकल्य से), मंत्र जाप करें।मोक्ष होने पर दान व पुन: सवस्त्र स्नान करें।
4.ग्रहण के सूतक समय में बच्चे, वृद्ध और अस्वस्थ लोगों को भोजन आदि का निषेध नहीं होता है।

क्षीरपान(खीर) निर्णय
शरद पूर्णिमा के दिन सूतक से पहले सायं 4.04 बजे तक खीर का प्रसाद बनाकर उसमें डाभ(कुशा) या तिल डालकर रख दें (तिलदर्भैर्न दूष्यति)व दूसरे दिन प्रसाद ग्रहण करें।

ग्रहण में राहु-केतु का अस्तित्व
भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं जो पृथ्वी के सापेक्ष एक दूसरे के उल्टी दिशा में (180 डिग्री पर) स्थित रहते हैं। चुकी ये ग्रह कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के अनुसार ही राहु और केतु की स्थिति भी बदलती रहती है। तभी, पूर्णिमा के समय यदि चाँद राहू (अथवा केतु) बिंदु पर भी रहे तो पृथ्वी की छाया पडऩे से चंद्र ग्रहण लगता है, क्योंकि पूर्णिमा के समय चंद्रमा और सूर्य एक दूसरे के उलटी दिशा में होते हैं। ये तथ्य इस कथा का जन्मदाता बना कि "वक्र चंद्रमा ग्रसे ना राहू"।