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सूखे चारे का अभाव, 500 से 1600 रुपए प्रति क्विटल तक पहुंचे भाव

locationजालोरPublished: Apr 27, 2019 11:08:55 am

जिले का दो तिहाई पशुपालन हो रहा है सांचौर में

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सूखे चारे का अभाव, 500 से 1600 रुपए प्रति क्विटल तक पहुंचे भाव

बींजाराम विश्नोई
सांचौर. चुनावी शोरगुल में पशुपालकों व किसानों के मुद्दे गुम से हो गए हंै। गर्मी की सीजन शुरू होते ही क्षेत्र में पशुओं के लिए पानी के साथ- साथ चारे की भी किल्लत शुरू हो गई है। जिसकी ओर ना तो सरकार और जनप्रतिनिधियों का ध्यान है और ना ही प्रशासन इस मुद्दे को प्राथमिकता से ले रहा है। ऐसे में पशुपालकों के समक्ष मवेशियों का पालन करना चुनौती भरा साबित हो रहा है। जिले के अंतिम छोर पर स्थित सांचौर क्षेत्र के अधिकांश गांव पिछली साल औसत से भी कम बारिश होने की वजह से अकाल की चेपट में हैं। यहां गर्मी का दौर शुरू हो जाने से पानी के साथ-साथ चारे की भी विकट समस्या खड़ी हो गई है। पशुधन के लिए चारे का जुगाड़ करना पशुपालकों के लिए दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा है। वहीं गोशालाओं की स्थिति अत्यंत चिंतनीय बनी हुई है। पशुपालकों ने बताया कि सुकाळ में सूखा चारा 500 रुपए प्रति क्विंटल मिलता था, लेकिन अब इसके दाम बढ़कर 1600 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए हैं। यह चारा भी यहां के पशुपालकों को आसानी से नसीब नहीं हो रहा है। बीकानेर व जोधपुर से ट्रकों में भरकर यहां चारा लाया जाता है। ऐसी स्थिति में पशु शिविर भी यहां संचालित नहीं होने से पशुपालकों के लिए अकाल की मार गले की फांस बनती जा रही है। सांचौर व चितलवाना पंचायत समिति के करीब २७३ गांवों में से अधिंकाश गांव अकाल की चपेट में हंै। जहां चारे का संकट पैदा हो गया है। यहां का पशुधन सूखा चारा (कुतर) खाता है। यह चारा सुकाळ में अधिकांश पशुपालकों के खेत में पैदा हो जाता है, लेकिन इस बार क्षेत्र में औसत से भी कम बाशि होने से पूरा जिला अकाल की चपेट में है। ऐसे में इस बार गांवों में कुतर ना के बराबर हुई है। जिसकी वजह से जो 450 से 500 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से मिलने वाली कुतर अब 1600 से 1700 में बिक रही है। गरीब पशुपालकों के इतने महंगे दामों पर पशुधन का पेट भरना महंगा व मुश्किल हो गया है।
जिले का दो तिहाई गोवंश संाचौर में
अकाल की मार से जूझ रहे सांचौर क्षेत्र में चारे के संकट से पशुपालकों की हालत पतली हो रही है। यहां चारे की पूर्ति फिलहाल अन्य जिलों से हो रही है। जिले के कुल गोवंश का करीब दो तिहाई सांचौर में पल रहा है। जिसके लिए करीब 21 गोशालाएं संचालित हैं। जिनमें करीब 31 हजार 417 गोवंश पल रहा है। गोशालाओं के अतिक्ति 66 हजार 673 गायें, 87 हजार 868 भैंसें, 32 हजार 26 भेड़ें, 43 हजार 746 बकरी, 405 घोड़े, 118 गधे और 911 ऊंट शामिल हंै। वहीं औसतन 273 गांवों में ढाई लाख पशुधन पल रहा है। ऐसे में चारे के संकट से पशुधन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वहीं गोशालाओं में मिलने वाला चारा भी अब 500 के बजाय 1600 रुपए प्रति किलो हो जाने से पशुपालन मुश्किल हो गया है।
यूं समझें चारे का गणित
पशुपालकों के अनुसार एक बड़े पशु को प्रतिदिन कम से कम से कम 10 किलो चारा चाहिए। इस हिसाब से प्रतिदिन 160 रुपए एक पशु पर चारे के लिए खर्च होते हैं। ऐसे में एक पशु पर महीने भर में चारे का खर्चा करीब ४ हजार आठ सौ रुपए बैठता है। अधिकांश पशुपालकों के पास 5 से 7 पशु हैं। ऐसे में 15 हजार से 33 हजार रुपए हर माह पशु चारे पर खर्च हो रहे हैं जो हर पशुपालक नहीं उठा सकता।
पशुओं को खुला छोडऩे की मजबूरी
क्षेत्र में बीते साल बारिश कम होने से पर्याप्त मात्रा में चारे का उत्पादन नहीं हो पाया। चारे के अधिक दाम से गरीब पशुपालक इसे खरीदने में असमर्थ हैं। जिस कारण वे पशुओं को मजबूरन खुला छोड़ रहे हैं। गांवों में चारे की तलाश में भटकते बेसहारा पशुओ की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
इनका कहना…
चारे के भाव बढऩे से पशुपालन मुश्किल हो गया है। 1600 से 1700 रुपए प्रति क्विंटल कुतर मिल रही है। प्रतिदिन एक पशु पर करीब 150 रुपए से ज्यादा खर्च आता है। आमदनी के अभाव में इतना महंगा चारा खरीदने में भी समर्थ नहीं है। सरकार को पशुपालकों के लिए चारा केंद्र खोलना चाहिए।
– वीयाराम, ग्रामीण, धानता
क्षेत्र में चारे के साथ-साथ पानी का भी अभाव है। चारा मोल खरीदने के बाद पानी भी मोल खरीदना पड़ता है। ऐसे में पशुपालन चुनौती बन गई है। सरकार को चार डिपो खोलकर पशुपालकों को राहत देनी चाहिए।
– भगवानाराम, ग्रामीण, अरणाय

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