
हाड़ेचा. स्कूल जाने से पहले बच्चों व शिक्षकों को लोगों से मन्नत करनी पड़ती है, ताकि रास्ता मिल सके। इसके बाद भी एक छात्र को दरवाजा बंद करने व खोलने की गारंटी देनी पड़ती है। इतना होने के बाद ही स्कूल जाया जा सकता है। यह काम एक दिन का नहीं बल्कि रोज का है। क्षेत्र के राजकीय उत्कृष्ट उच्च प्राथमिक विद्यालय साकरिया की स्थिति यही है। विद्यालय गांव से करीब आधा किमी दूर खेत में बनाया गया है, लेकिन जाने के लिए रास्ता नहीं लिया गया। नजदीकी खेतों में फसल बुवाई के बाद रास्ता बंद हो जाता है। आवाजाही के लिए इन खेत मालिकों सेआधा किलोमीटर दूर से ही खेतों में लगे गेट खुलवाने के लिए मन्नत करनी पड़ती है।इनमें से एक छात्र को गेट खोलने व बंद करने का वादा भी करना पड़ता है।
धरी रह जाती हैं योजनाएं
सरकार भले ही वंचित बालकों को शिक्षा से जोडऩे के प्रयास कर रही हो।निशुल्क शिक्षा के माध्यम से भी शिक्षा के स्तर को सुधारने का प्रयास हो रहा है, लेकिन इस विद्यालय के लिए जाने का रास्ता नहीं होने से छात्र परेशान हंै।
भूमि भी स्कूल के नाम नहीं
पूर्व में एक संयुक्त परिवार की ओर से विद्यालय को भूमि दान की गई थी। इसमें चार कमरे बनवाए गए, लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी भूमि विद्यालय के नाम नामांतरण नहीं हो पाई। खेतों में फसल लहलहाती होने के दौरान अस्थाई रास्ता देने की मन्नत करने के लिए किसानों की बैठक तक रखनी पड़ती है।
यह है स्थिति
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय साकरिया में 162 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत है। प्रधानाध्यापक का पद रिक्त चल रहा है।आठ शिक्षक पद है, लेकिन 6 शिक्षक ही कार्यरत है। इसमें से भी एक शिक्षक को अन्य विद्यालय में प्रतिनियुक्ति पर लगा रखा है।चार कमरों में बिठाकर आठ कक्षाओं का अध्ययन करवाया जा रहा है।
विनती करते हैं...
विद्यालय में रास्ता नहीं होने से ग्रामीणों से कई बार विनती करनी पड़ती है।इसके बाद ही मुख्य सड़क व अन्य खेतों की पगडंडी से होकर विद्यालय आना पड़ता है।भूमि का भी नामांतरण नहीं हो पाया है।
-सुनीलकुमार, कार्यवाहक प्रधानाध्यापक, साकरिया
समाधान को प्रयासरत...
नामांतरण नहीं होना व रास्ता नहीं मिलने की समस्या गंभीर है। समाधान के लिए प्रयासरत है।फिलहाल विनती के माध्यम से ही काम चला रहे हैं।
-शैतानसिंह, बीईईओ, चितलवाना
Published on:
21 Nov 2017 11:30 am
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