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CG Analytical Story : आगजनी के सालाना इतने केस, फिर भी जिला अस्पताल में बर्न यूनिट की संभावना नहीं

- मांग अधर में है, तब तक जिले के लोगों को सिम्स या फिर अपोलो पर ही निर्भर रहना पड़ेगा

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CG Analytical Story : आगजनी के सालाना इतने केस, फिर भी जिला अस्पताल में बर्न यूनिट की संभावना नहीं

CG Analytical Story : आगजनी के सालाना इतने केस, फिर भी बर्न यूनिट की संभावना नहीं

जांजगीर-चांपा. जिला अस्पताल में बर्न यूनिट की स्थापना होते दिखाई नहीं दे रहा है। दस माह में आगजनी के 50 मामले हो चुके। पांच लोगों की मौत भी हो चुकी, लेकिन बर्न यूनिट की स्थापना नहीं की जा रही है। जबकि सरकार जिला अस्पताल में ही एसएनसीयू यूनिट सहित अन्य कई तरह की जरूरी संसाधने बढ़ाई जा रही है। वहीं बर्न यूनिट के लिए भी प्रस्ताव गया है, लेकिन मांग अधर में है, तब तक जिले के लोगों को सिम्स या फिर अपोलो पर ही निर्भर रहना पड़ेगा।

जांजगीर चांपा को जिला बने अब दो दशक होने को हैं। इसके बाद भी जिले में स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के नाम पर सरकार ने आंखे मूंद ली है। भले ही जिला अस्पताल में अन्य कई तरह की सुविधाओं का इजाफा किया जा रहा है। इसके लिए ढाई करोड़ की लागत से ट्रामा सेंटर का निर्माण किया जा रहा है। जिसमें बर्न यूनिट की स्थापना भी प्रस्तावित है। मगर जनता के नसीब यह सुविधा कम उपलब्ध कराई जाएगी यह अधर में है।

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जिले में हर माह जलने से पांच से छह मरीज जिला अस्पताल पहुंचते हैं। दूर दराज के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से भी मरीज यहां भेज दिए जाते हैं, लेकिन जिला अस्पताल में बर्न यूनिट नहीं होने से लोगों की जान यूंही चली जाती है। जनवरी से 4 अक्टूबर तक जले हुए मरीजों का आंकड़ा 50 के करीब पहुंच चुका है। जिसमें पांच लोगों की मौत हो चुकी है। यदि जिला अस्पताल में बर्न यूनिट की स्थापना होती तो साल में मरीजों की जान बचाई जा सकती थी।

जिला अस्पताल में भी जले हुए मरीजों के लिए स्पेशल वार्ड नहीं होने से सामान्य वार्ड में ही उन्हें भर्ती किया जाता है। ऐसे में अन्य मरीजों का वायरल ऐसे मरीजों के शरीर में समाहित हो जाता है। इसके कारण मरीजों का मर्ज कम होने की बजाए उल्टे बढ़ते जाता है। जिला अस्पताल में अलग से वार्ड होने पर ऐसे मरीजों को सुविधा का लाभ मिलता।

एसी कमरे भी नहीं
जिला अस्पताल में ऐसे मरीजों को लिए अलग से एसी कमरा भी नहीं है। ताकि मरीजों को कुछ राहत मिल जाती। जले हुए मरीजों को सामान्य वार्ड में ही रखा जाता है। ठंडी हो, गर्मी हो या बारिश के दिन। हर सीजन में जले हुए मरीजों को सामान्य वार्ड में रखा जाता है। जबकि जले हुए मरीजों को गर्मी के दिनों में एसी में रखा जा सकता है। हालांकि जिला अस्पताल में दो वार्ड पेइंग वार्ड है। जिसका किराया 300 रुपए प्रति दिन होने से गरीब वर्ग के मरीज इस सुविधा का लाभ नहीं ले पाते। बताया यह भी जाता है कि आए दिन इस वार्ड का एसी बिगड़ा रहता है। इसके कारण यहां से मरीजों का मोहभंग हो जाता है।

गरीबी भी दूसरी वजह
गरीबी के चलते जले हुए मरीजों को परिजन किसी अच्छे अस्पताल में नहीं ले जा सकते। जबकि उन्हें उचित सलाह दी जाती है। हाल में सारागांव क्षेत्र से आए मरीज को बिलासपुर रेफर किया गया था। बिलासपुर के सिम्स में भी बर्न केस के लिए अच्छी सुविधा नहीं होने से मरीजों का मर्ज बहुत जल्दी ठीक नहीं होता। इसके कारण मरीजों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है और वे किसी बड़े अस्पताल में इलाज नहीं करा पाते।

जले हुए मरीजों के आंकड़े
जनवरी-8, फरवरी-7, मार्च-5, अप्रैल-7, मई-5, जून-4, जुलाई-3, अगस्त-4, सितंबर-3, अक्टूबर-2, योग- 48

- बर्न यूनिट के लिए प्रस्ताव गया हुआ है। नए अस्पताल में यह सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी- डॉ. वी जयप्रकाश, सीएमएचओ