
CG News: जांजगीर-चांपा पत्रिका @ संजय राठौर। देश के दूसरे नंबर के सबसे बड़े क्रोकोडायल पार्क कोटमीसोनार में पल रहे सैकड़ों की तादात में मगरमच्छ सैलानियों को जरूर भा रहे हैं, लेकिन आसपास के गांवों के तालाबों में बड़ी तादात में मगरमच्छ पल रहे हैं। इन्हें संरक्षित कर पाना वन विभाग के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
दरअसल क्रोकोडायल पार्क के अलावा कर्रा नाला डेम के अलावा आधा दर्जन गांव के तालाबों के आसपास हर दो चार दिन के बाद मगरमच्छ गली कूचों में बिलबिलाते रहते हैं। विडंबना यह है कि वन विभाग सालाना लाखों खर्चने के बाद भी 17 सालों में क्रोकोडायल पार्क के आसपास के तालाब व कर्रानाला डेम के मगरमच्छ को पार्क में शिफ्ट नहीं कर पाया। इसके चलते आज भी पार्क से अधिक पड़ोस के तालाब व डेम में मगरमच्छ तैनात हैं।
आपको बता दें किए अप्रैल मई का महीना मगरमच्छ का प्रजनन काल का दौर रहता है। इस दौरान मादा मगरमच्छ तकरीबन एक दर्जन अंडे देती हैं। 15 जून तक अंडे परिवक्व हो जाता है और जून में जब तेज गरज के साथ आकाशीय बिजली चमकती है तो गरज से अंडे फूटने लगते हैं।
जन्म के दौरान मगरमच्छ के बच्चे छिपकली साइज के होते हैं। जो बारिश होते ही यही बच्चे भटककर गांव की गलियों की ओर कूच करते हैं। जिससे यही बच्चे क्रोकोडायल पार्क से निकलकर गांव की गलियों में स्वच्छंद विचरण करते हैं। हर साल की तरह इस साल भी तकरीबन 50 से अधिक मादा मगरमच्छ 250 अंडे देते हैं जो बड़े मगरमच्छ में तब्दील होंगे।
वन विभाग के मुताबिक अब तक आसपास के तालाबों से 367 मगरमच्छों की शिफ्टिंग कर चुके हैं। जबकि अब भी सैकड़ों की तादात में मगरमच्छ अन्य तालाबों में निवासरत हैं। इसकी शिफ्टिंग के लिए वन विभाग हर साल ग्रामीणों की सूचना पर रेस्क्यू करती है लेकिन पूरी तरह से सफल नहीं हो पाती। इसकी वजह तालाबों में भरपूर पानी का होना बताया जा रहा है।
90 एकड़ के क्रोकोडायल पार्क में तकरीबन 400 मगरमच्छ है। इसके अलावा पार्क के एक 500 मीटर की दूरी पर 110 एकड़ के कर्रानाला डेम में तकरीबन 100 से अधिक मगरमच्छ हैं। इसके आलावा कोटमीसोनार के जगतालाब दर्रीतालाब, नया तालाब, उपरोहित तालाब के अलावा दर्रीटांड़, कल्याणपुर, पोड़ीदल्हा, परसाहीनाला गांव के तालाबों में बड़ी तादात में मगरमच्छ निवासरत हैं।
अप्रैल मई का महीना मगरमच्छों का प्रजनन काल का दौर रहता है। मई जून में मादा मगरमच्छ के अंडे परिवक्व होकर फूटते हैं। जो आसपास के गांवों में पहुंच जाते हैं। ग्रामीणों की सूचना पर इसका रेस्क्यू तभी किया जाता है जब ग्रामीण हमें सूचना देते हैं। अलग से इसका रेस्क्यू करने की कोई योजना हमारे पास नहीं रहती। - प्रियंका पांडेय, डीएफओ, जांजगीर-चांपा
Published on:
28 Apr 2025 10:59 am
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