कोसा कपड़े में अब सिर्फ साड़ियों की डिमांड रह गई है। एक जमाना था, जब हाई क्वालिटी और नर्म होने से चांपा के कोसा कपड़े की सप्लाई तकरीबन 25 देशों तक थी। लेकिन कोरोना के बाद इसका बाजार ऐसा गिरा कि आज तक नहीं उठ पाया। पहले एक एक व्यवसायी साल में 1-1 करोड़ का कारोबार करते थे लेकिन अब कारोबार 25 लाख से भी ऊपर नहीं जा पा रहा है।
चांपा के वासुदेव देवांगन बताते हैं कि पहले वे बेंगलूरु, दिल्ली, मुंबई में कोसा कपड़ा सप्लाई करते थे, लेकिन अब डिमांड पहले की अपेक्षा बेहद कम है। फिर भी बीते सीजन के हिसाब से कुछ-कुछ डिमांड आने लगी है। चांपा के ही नंद कुमार देवांगन ने बताया कि कोसा के कपड़े को अब कोई नहीं पूछता। लोग अब ब्रांडेड कपड़े पहनने लगे हैं। कोसा कपड़ा भी महंगा है लेकिन इसमें सिर्फ साडिय़ों का कारोबार ही बचा है। शेष अन्य तरह के कपड़े नहीं के बराबर बिक रहे।
500 करोड़ का कारोबार अब 100 करोड़ भी नहीं
चांपा का कोसा कपड़े का कारोबार पहले 500 करोड़ रुपए तक जा पहुंचता था, लेकिन अब स्थिति ऐसी आन पड़ी है कि इनका कारोबार 100 करोड़ का आंकड़ा भी पार नहीं कर पा रहा है। पहले लोग कोसा कपड़े को बड़े शान से पहनते थे, लेकिन अब लोग साड़ी समेत कुर्ता पायजामे में भी ब्रांड खोजते हैं।
25 हजार परिवार पर संकट के बादल
प्रदेश में सबसे बड़ा चांपा में कोसा कपड़े का कारोबार है। चांपा, सक्ती सहित आसपास के गांवों में 25 हजार बुनकर परिवार हैं। जिनके पास अब रोजी-रोटी का संकट आन पड़ा है। इसकी प्रमुख वजह कोसा कपड़े की डिमांड नहीं के बराबर है। अब बुनकर परिवार अन्य रोजगार की तलाश में जुट गए हैं।
15 हजार रुपए तक की साड़ी बनती थी
जिले में कोसे की साड़ियां ज्यादा फेमस हैं। यहां 1000 से लेकर 15 हजार रुपए तक की साड़ियां बनती थी। यह साड़ी विदेशों में ज्यादा फेमस थी और यही साड़ी विदेशों में 40 से 50 हजार रुपए तक बिकती थी। जबसे कोसा कपड़े का मार्केट डाउन हुआ है तब से इन्हीं साड़ियों की कीमत 3 से 4 हजार तक कम हो चुका है। जो साड़ी पहले देश के भीतर 10 हजार तक बेचते थे उन्हीं साड़ियों की कीमत 3 से 4 हजार रुपए में भी कोई लेने तैयार नहीं हो रहे हैं। जिले के 25 हजार बुनकरों द्वारा कोसा का कारोबार किया जाता है। लेकिन पिछले दो तीन सालों से कोसा कपड़े का मार्केट बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पहले देश के बड़े शहरों के अलावा 20 देशों में कोसा कपड़े का कारोबार होता था, लेकिन अब इसका दायरा एकदम से सीमित हो चुका है। इसकी भरपाई के लिए हथकरघा के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकार से मांग की जा रही है। ताकि स्थानीय कोसा बुनकरों को रोजगार मिल सके।