
टॉपिक ऑफ द डे
जांजगीर-चांपा. पत्रिका डॉट काम द्वारा आयोजित टॉपिक ऑफ द डे में शहर के वरिष्ठ साहित्यकार विजय राठौर उपस्थित हुए। वे प्रदेश ही नहीं देशभर में ख्याति प्राप्त साहित्य संस्था शील साहित्य परिषद के सदस्य हैं और उनका मानना है कि परिषद नए साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के साथ उनको अलग-अलग विधाओं में जानकारियां प्रदान कर रही है।
शहर के वरिष्ठ साहित्यकार विजय राठौर ने बताया कि साहित्य एक अलग दौर में है, जिसमें कई तरह के नए विचारों का समायोजन हो रहा है। इसी कड़ी में गजल के समानांतर सजल की परिकल्पना हुई। सजल में उर्दू के कठिन शब्दों का उपयोग नहीं किया जाता। इसमें सामान्यत: हिन्दी के ही शब्दों का चयन किया जाता है। उन्होंने बताया कि सहित्य की एक विधा गजल में भाषा की निरंतरता को बनाए रखने और परंपरा के लिए सजल की शुरूआत की गई है। हिन्दी में गजल लिखने वालों को मान्यता नहीं दी जाती, जिसके कारण सजल की शुरूआत की गई है।
इस विधा के रचनाकार देशभर में केवल 150 हैं और मथुरा में इसकी संस्था का कार्यालय है, जहां हर छह माह में कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर भी साल में एक बार कार्यक्रम होता है, जो इस वर्ष वाराणसी में होगा।
सजल की विधा भी लोगों के बीच खासा लोकप्रिय हो रहा है और इससे लगातार युवा साहित्यकार जुड़ रहे हैं। इसके लिए बनाए गए मानकों से नए लोगों को परिचित कराया जाता है और वे इसी आधार पर अपनी रचना कर रहे हैं। इसी तरह उन्होंने बताया कि शील साहित्य परिषद द्वारा नए साहित्यकारों के लिए समय-समय पर कार्यशाला का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें विधाओं की बारीकियों से अवगत कराया जाता है। साथ ही नए साहित्यकारों की रचनाओं को परिष्कृत करने का कार्य भी किया जाता है।
उन्होंने नए साहित्यकारों के साथ सभी स्थापित रचनाकारों को अपनी रचना पूरा होने के बाद एक बार पहले किसी वरिष्ठ साहित्यकार को दिखाकर प्रकाशित कराने का आग्रह करते हुए बताया कि इससे रचना में किसी भी तरह की त्रुटि या सुधार संभव होता है।
Published on:
17 May 2018 02:33 pm
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