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सीएम के जिले में दांव पर लग जाती है बच्चों की जान…

मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र के मेडिकल कॉलेज या अस्पतालों से जैसे चिकित्सक मरीज को कोटा रैफर करने की बात कहते हैं, परिजनों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

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मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र के मेडिकल कॉलेज या अस्पतालों से जैसे चिकित्सक मरीज को कोटा रैफर करने की बात कहते हैं, परिजनों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वजह है खतरे की धार पर मरीज को कोटा तक पहुंचाने की चुनौती।

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फटेहाल हो चुके झालावाड़-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग से मरीजों की जान सांसत में आ जाती है, वहीं सांगोद-खानपुर मार्ग से भी वक्त तो लगता ही है।हालांकि परिजन अपेक्षाकृत कम खतरे को उठाते हुए सांगोद मार्ग से कोटा ले जा रहे हैं।इसके चलते जहां करीब डेढ़ गुना अधिक चलना पड़ रहा है, वहीं मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। कई बार मरीजों की जान पर बन आती है।

शिशुओं पर संकट ज्यादा

झालावाड़ से कोटा रैफर करने के दौरान सर्वाधिक परेशानी शिशुओं के साथ होती है। शिशुओं को कई तरह की जटिलताओं के चलते उपचार के लिए यहां से रैफर किया जाता है। लेकिन खानपुर होते हुए कोटा का मार्ग लंबा होने के कारण जान संासत में रहती है।

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मेडिकल कॉलेज से अप्रेल से अगस्त तक 35 शिशुओं को कोटा रैफर किया। अप्रेल में 7, मई में 11, जून में 5, जुलाई में 10 व 8 अगस्त तक ये संख्या 2 है। मई में 1, अगस्त में एक प्रसूता को रैफर किया है। उधर, जनाना चिकित्सालय से गत चार माह के दौरान 2 प्रसूताओं को कोटा रैफर किया। इसमें गत 7 अगस्त को 1 प्रसूता को डिलीवरी कांप्लिकेशन के चलते, जबकि एक प्रसूता मई में रैफर किया।

परिजनों की जुबानी जान सांसत में रही

शिशु को तकलीफ के चलते जुलाई के अंतिम सप्ताह में कोटा रैफर किया। रोड खराब होने के कारण हम वाया खानपुर-सांगोद के रास्ते से कोटा गए लेकिन अधिक समय लगने के कारण शिशु की जान सांसत में रही।

अनिल कौशिक, परिजन

झालावाड़ वाया दरा कोटा मार्ग खराब होने से अब रैफर मरीजों को खानपुर से होते हुए कोटा भेज रहे हैं।

डॉ.राजन नंदा, अस्पताल अधीक्षक जनाना चिकित्सालय

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