
झालावाड़. बचपन वो नाजुक उम्र होती है जब हर बच्चे को माँ का आँचल, पिता का कंधा, दादा-दादी की कहानियाँ और घर की छाँव चाहिए। लेकिन कुछ मासूमों की किस्मत में ये सब बहुत जल्दी छिन जाता है। ऐसे में राजस्थान सरकार की पालनहार योजना एवं नीति-2022 उनके लिए सच्चा पालनहार बनकर उभरी है। झालावाड़ जिला आज इस योजना की बदौलत हजारों बच्चों के जीवन में नई उमंग और नया विश्वास भर रहा है। पढ़ाई, पौष्टिक भोजन, कपड़े-जूते, दवाइयां और बचपन का सम्मान, सब कुछ इस योजना ने संभव कर दिखाया है। झालावाड़ जिले में इस समय 14,200 से अधिक बच्चे पालनहार योजना से जुड़े हुए हैं। इनमें पूर्ण अनाथ, माता या पिता खो चुके बच्चे, विधवा-परित्यक्ता माँ के बच्चे, एड्स-कैंसर-कुष्ठ रोगी अभिभावकों के बच्चे, आजीवन कारावास भुगत रहे माता-पिता के बच्चे तथा स्वयं दिव्यांगजन बच्चे शामिल हैं। हर महीने इन बच्चों के संरक्षक (नजदीकी रिश्तेदार या अभिभावक) के जन-आधार से लिंक्ड बैंक खाते में 750 से 1500 रुपए सीधे जयपुर मुख्यालय से ट्रांसफर हो रहे हैं। नतीजा यह कि अब कोई बच्चा भूखे पेट स्कूल नहीं जाता, फटे कपड़े या बिना जूतों के नहीं दिखता और किताब-कॉपी की कमी से उसकी पढ़ाई नहीं रुकती।
2025-26 सत्र में झालावाड़ जिला प्रदेश के टॉप परफॉर्मर जिलों में अव्वल है। जिले में 13,600 से अधिक बच्चों का सत्यापन समय से पहले पूरा हो चुका है। जिले में 13,600 से ज्यादा बच्चों का भौतिक सत्यापन एवं नवीनीकरण निर्धारित पूरा कर लिया गया। बाकी बचे बच्चों का काम भी अंतिम चरण में है। जिला कलक्टर एवं उपनिदेशक समाज कल्याण के कुशल नेतृत्व में विभागीय टीम ने गाँव-गाँव शिविर लगाए, घर-घर जाकर दस्तावेज़ जांचे और आंगनबाड़ी, आशा सहयोगिनी तथा स्कूल शिक्षकों के साथ मिलकर एक भी पात्र बच्चे को छूटने नहीं दिया। परिणामस्वरूप झालावाड़ जिला इस बार प्रदेश के टॉप-3 जिलों में शुमार हो गया।
राजस्थान शिक्षक संघ रेसटा के प्रदेश उपाध्यक्ष गजराज सिंह ने बताया कि जिले में जो काम हुआ है वो पूरे प्रदेश के लिए मिसाल है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा सहयोगिनियों, शिक्षकों और पंचायत सचिवों ने रात-दिन एक कर दिया, इसके चलते ये मुकाम मिला।
- पूर्ण अनाथ बच्चे
- माता या पिता में से किसी एक के देहांत के बाद बचे बच्चे
- विधवा, तलाकशुदा या परित्यक्ता माँ के बच्चे
- 40% या उससे अधिक दिव्यांगता वाले माता-पिता के बच्चे
- कुष्ठ रोग, एड्स, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित अभिभावकों के बच्चे
- आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे माता-पिता के बच्चे
- स्वयं दिव्यांग (विशेष योग्यजन) बच्चे
- 0-6 वर्ष तक के बच्चे को 750 रुपए प्रतिमाह
- स्कूल जाने वाले बच्चे (कक्षा 1 से ऊपर) को 1500रूपए प्रतिमाह (शिक्षा के लिए अतिरिक्त 500रूपए सहित)
- राशि सीधे संरक्षक के जन-आधार लिंक्ड बैंक खाते में डीबीटी से
- हर साल स्कूल/आंगनबाड़ी से उपस्थिति एवं प्रवेश प्रमाण-पत्र अनिवार्य
जिले का एक भी पात्र बच्चा सरकार की योजना सेवंचित नहीं रहे, इसके लिए अभी सत्यापन का काम चल रहा है। हमने ग्राम पंचायत स्तर पर लगे शिविर में लोगो को जानकारी दी, आंगनबाड़ी और आशा ने भी स्कूलों में निरंतर जागरूकता अभियान चलाया। अभी तक 14 हजार से अधिक का सत्यापन हो चुका है।
Updated on:
05 Dec 2025 11:34 am
Published on:
05 Dec 2025 11:33 am
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