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राजस्थान में यहां के साग-रोटा की भारी डिमांड, चार माह में एक करोड़ से ज्यादा का होता है कारोबार

चिड़ावा के पेड़ों के अलावा यहां का साग-रोटा भी देशभर में खूब चाव से खाया जाता है। इस लजीज डिश की बड़े-बड़े शहरों में भी डिमांड है। यहीं वजह है कि महज चार माह की सीजन में करीब एक करोड़ से ज्यादा का कारोबार हो जाता है।

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Saag or rota

झुंझुनूं। चिड़ावा के पेड़ों के अलावा यहां का साग-रोटा भी देशभर में खूब चाव से खाया जाता है। इस लजीज डिश की बड़े-बड़े शहरों में भी डिमांड है। यहीं वजह है कि महज चार माह की सीजन में करीब एक करोड़ से ज्यादा का कारोबार हो जाता है। व्यवसायी से जुड़े लोगों ने बताया कि सागा-रोटा की सीजन सर्दी यानी नवंबर से फरवरी तक चलती है।

अधिकांश दुकानों में सप्ताह के बुधवार, शुक्रवार और रविवार को साग-रोटा तैयार किए जाते हैं। कुछ दुकानों पर प्रतिदिन भी तैयार होने लगे। साग-रोटा की फुल और हॉफ डाइट तय कर रखी है। व्यवसाय से जुड़े लोग बताते हैं कि साग-रोटा करीब चार दशक से ज्यादा समय पहले चलन में आया था। जो कि घर-घर में दस्तक दे चुका है। देशी घी से बना होने के कारण सेहत को भी नुकसान नहीं पहुंचाता। चिड़ावा का साग-रोटा क्षेत्र को समूचे भारत में अलग पहचान दे रहा है।

फूलगोभी और मटर की प्याज-लहसून के तड़के से बनने वाला साग (सब्जी) की तरह दूध-घी के मोयन लगे बेसन के रोटे (रोटियां) खूब लोकप्रिय हो रहे हैं। वैसे तो साग-रोटा बनाने का तरीका बहुत पुराना है, जो कि 10 से 12 सालों में व्यावसायिक रूप ले चुका। चिड़ावा शहर में दर्जनों जगहों पर साग-रोटा तैयार हो रहा है। उधर, नववर्ष के चलते साग-रोटा की डिमांड भी बढ़ गई। देर रात तक दुकानों के बाहर साग-रोटा खरीदने के लिए ग्राहकों की भीड़ रही। बहुत से लोगों ने घरों पर ही कारीगरों को बुलाकर साग-रोटे तैयार करवाए।

सर्दियों में बनते साग-रोटा

शहर के बहुत सी दुकानों, होटल, ढाबों में सर्दी के मौसम में साग-रोटे बनाए जा रहे हैं। जिसकी एक डाइट छह सौ से सात रुपए तक बिक रही है। फुल डाइट में 14 से 16 रोटा (रोटी) और 800 ग्राम से एक किलो साग दिया जा रहा है। हाफ डाइट में 7 से 8 रोटा (रोटी) और 400 से 500 ग्राम सब्जी दी जाती है।

लोगों को मिल रहा है रोजगार-

क्षेत्र की लजीज रेसिपी साग-रोटा देशभर में अलग ही पहचान बना रहा है। जिसके चलते बहुत से लोगों को रोजगार भी मुहैया हो रहा है। चिड़ावा का साग-रोटा जयपुर, कोटा, सीकर, जोधपुर, गंगानगर, दिल्ली समेत अन्य जगहों पर भी खूब पसंद किया जा रहा है। काफी डाइट प्रतिदिन ऑर्डर पर बाहर जाते हैं।

अन्य शहरों में बन रहे साग-रोटा

चिड़ावा की रेपिसी को दूसरी जगहों पर भी खासी पहचान मिल रही है। कुछ साल पहले अकेले चिड़ावा में ही साग-रोटा तैयार होता था। फिलहाल झुंझुनूं, बगड़, सिंघाना, सूरजगढ़, पिलानी समेत अन्य शहरों में भी चिड़ावा के नाम से साग-रोटा बनकर बिक रहे हैं। नववर्ष पर साग-रोटा की डिमांड भी काफी बढ़ रही है।

यूं तैयार होता है साग-रोटा

साग बनाने के लिए शुद्ध घी और फूलगोभी-मटर की जरूरत पड़ती है। घी को गर्म करने के बाद जीरा, प्याज का तड़का लगाते हुए लहसून, लाल सूखे धनिये, मिर्च, अदरक, हरी मिर्च को पकाया जाता है। मसाला तैयार होने के बाद उसमें पहले से काटकर रखी गई सब्जियां डाली जाती है। कुछ जगहों पर साग-रोटा बनाने में जायफल, इलाइची व अन्य पाचक चीजे भी डाली जाती हैं। वहीं रोटा बनाने के लिए बेसन और आटे की जरूरत पड़ती है। बेसन की मात्रा 70 प्रतिशत होती है तो आटे की मात्रा 30 फीसदी रखी जाती है। जिसे दूध में गूंदकर घी का मोयन लगाया जाता है।


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