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पंचकुंडा की 46 छतरियां : जोधपुर के पुरोधा राव जोधा की छतरी आज भी अज्ञात

जयपुर नरेश की पुत्री सूर्यकंवर की छतरी सर्वाधिक आकर्षक

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46 Panchkunda monuments but Rao Jodhas monuments is still unknown

46 Panchkunda monuments but Rao Jodhas monuments is still unknown

अलग-अलग सदियों में निर्मित मंडोर पंचकुंडा की छतरियों में जोधपुर नगर के संस्थापक राव जोधा की छतरी गुमनामी के अंधेरे में है। मंडोर का पंचकुंडा जोधपुर राजघराने का सदियों पूर्व से ही प्रथम प्राचीन दाह-संस्कार स्थल रहा है। यहां पर तत्कालीन शासकों द्वारा अपने पूर्वजों की याद को बनाए रखने के लिए सुंदर कलात्मक छतरियों का निर्माण करवाया गया। सभी छतरियां घाटू के पत्थरों से निर्मित हैं। लगभग सभी की स्थापत्य कला एक सी है। कई छतरियों के नीचे तल-भवंरे भी बने हुए हैं। मारवाड़ के प्रारम्भिक राजा व रानियों कीछतरियों में बंगाली काट के सदृश्य छज्जे आकर्षक हैं। मारवाड़ में छतरियों का निर्माण वास्तुकला की सुन्दरतम कृति हैं। ऐसी मान्यता रही है कि मृत व्यक्ति की आत्मा को ये छतरियां, देवल, थड़े स्वर्ग में ले जाने के वाहन होते हैं।

महारानी सूर्यकंवर की छतरी आकर्षक
जोधपुर की महारानी कच्छवाही सूर्य कंवर (जयपुर नरेश प्रतापसिंह की पुत्री), जिनकी मृत्यु माघ सुदी पंचमी विक्रम संवत 1882 (28 जनवरी 1826 ई.) को हुई थी। इनकी स्मृति में बनाई गई छतरी स्थापत्य कला की दृष्टि से बहुत सुन्दर है। छतरी में 32 खंबे लगे होने के साथ ही बीचों-बीच छोटी संगमरमर की सफेद छतरी बनाकर उसमें चरण चिन्ह शिलालेख के साथ अंकित किए गए हैं। यहां स्थित 46 छतरियां पुरातात्विक एवं स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

राजनीतिक उथल पुथल का असर पंचकुण्डा सभी छतरियों में मण्डोर के निकट 'घोड़ा घाटीÓ की खानों का लाल पाषाण (पत्थर) प्रयुक्त हुआ है। किसी किसी छतरी में संगमरमर में पीले, लाल व नीले रंगों का प्रयोग भी हुआ है। राव गांगा की छतरी एवं यहां पर स्थित अन्य छतरियों के तुलनात्मक विवेचन से कोई भी कला पारखी इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि राव चूण्डा के मरणोपरांत जोधपुर के नरेश मुगलों की सामाजिक- सांस्कृतिक परंपराओं को आत्मसात करने में लगे थे। कुछ छतरियां कलात्मक दृष्टि से भव्य नहीं है। ऐसा इसलिए संभव है कि तत्कालीन राजनीतिक जीवन में उथल-पुथल रही हो, जिसने आर्थिक विपन्नताओं को जन्म दिया हो।

रानियों की याद में छतरियों का निर्माण
पंचकुंडा के पास जोधपुर के शासकों की रानियों की शमशान भूमि होने के कारण यहां पर लगातार रानियों की स्मृति में छतरियों का निर्माण होता रहा है। छतरियों के पास मारवाड़ के पूर्व शासकों राव चूण्डा, राव राणमल और राव गंगा आदि के स्मारक बने हुए हैं। इनमें राव गंगा का स्मारक एतिहासिक व स्थापत्य की दृष्टि से काफ ी महत्वपूर्ण है। इसकी रचना मंदिर कृति के सदृश है। गर्भगृह के द्वार पर गंगा यमुना को वाहनों के साथ उत्कीर्ण किया गया है। द्वार पर ऊष्ट मातृकाओं का अंकन भी किया गया है। छतरी के वेदि-वन्द पर विभिन्न मुद्राओं में गज का प्रदर्शन है। पंचकुंडा की छतरियों के एक समूह में बनी छतरियों पर कलात्मक कार्य प्रचुर मात्रा में करवाया गया है, जबकि दूसरे समूह की छतरियों में कलात्मक कार्य नहीं के बराबर है। कलात्मक छतरियों की एक विशेषता यह रही है कि इनकी स्थापत्य कला एक जैसी हैं। आकार में भिन्नता अवश्य देखी जा सकती है।

शिलालेख खण्डित होने से पता करना मुश्किल

मंडोर पचकुण्डा में शिलालेख नष्टप्राय: होने के कारण राव जोधा की छतरी की पहचान करना मुश्किल हो गया है। बरसों पहले इतिहासकार रामदत्त थानवी ने गहन शोध के बाद पंचकुण्डा परिसर में एक छतरी को चिह्नित किया था लेकिन वह राव जोधा की छतरी है यह अभी तक पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है।
डॉ. एमएस तंवर, सहायक प्रबंधक, महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश मेहरानगढ़