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बिलाड़ा की मंडी में जाने से घबराने लगे किसान

locationजोधपुरPublished: Jun 08, 2018 06:30:09 pm

मंदी की मार से परेशान व्यापारी एवं किसान

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कृषि उपज मंडी में पसरा है सन्नाटा

जीएसटी एवं ई वे बिल में उलझा व्यापारी
-जनवरी में कपास 56 सौ बोरी आया मार्च में 214 बोरी आकर थम गया
बिलाड़ा।
बारहों मास गुलजार रहने वाली कृषि उपज मंडी परिसर में इन दिनों सन्नाटा पसरा हुआ है, किसानों को अपनी उपज के पूरे दाम नहीं मिलने से न तो उपज मंडी में आ रही है और न ही मंदी के कारण व्यापारी उबर पा रहा है। व्यापारियों की जैसे जीएसटी और हाल ही में लागू की गई ई वे बिल पद्धति ने जैसे सत्रह एका का पहाड़ा डाल दिया है।

उपज के दाम गिरे ओंधे मुंह
इस वर्ष खरीफ की उपज मंडी में पहली बार आई तो कपास 6 हजार रूपये प्रति क्विंटल तक की निलामी पर बिका, सोफ 15 हजार से 16 हजार तक बिकी, जीरा 18 हजार तक बोली पर छुटा, चना साढे चार हजार तक बिका, लेकिन वर्तमान में मंदी की ऐसी बयार पूरे प्रदेश में चली की कपास 5 हजार 300, सोंफ लुढकर 7 हजार पर आ गई, जीरा 14 हजार रूपये प्रति क्विंटल पर भी व्यापारी खरीदने को तैयार रही और चना 3 हजार से 33 सौ तक धड़ाम से ओंधे मुंह गिर पड़ा।

किसान को कर्ज चुकाने की चिंता
गिरे हुए दामों पर किसान अपनी उपज बेचने को तैयार नहीं और उपज को अपने घरों में डाले रखा है और यहीं कारण है कि किसान इन दिनों बैंको से लिया हुआ कर्ज चुका नहीं पा रहा। सरकार ने ऋण माफी घोषणा तो कर दी, लेकिन उसे अमली जामा कब तक पहनाया जाऐगा, इस आशा में किसान दिन गिन रहा है। वहीं बैंकों एवं साहूकारों से लिए हुए कर्ज का ब्याज का चक्र रात-दिन घुम रहा है, जिसकी चिन्ता में किसान भारी परेशानी में है।

व्यापारी भी कम परेशान नहीं
कृषि उपज मंडी बिलाड़ा व्यापार संघ के अध्यक्ष मनोहरसिंह की माने तो सरकार किसी की भी रही हो छोटे व्यापारियों का कभी भला नहीं किया और उन्हें सदा शक की दृष्टि देखा गया, यहां तक की उन्हें चोर समझा जाता है। जबकि वे मंडी में किसान का माल निलामी पर छुड़ाने के साथ ही मंडी शुल्क अदा करते है, उनके व्यापार से सैकड़ों हमालों को रोजगार मिलता है, किसानों को उपज तुलाने के पश्चात हाथों-हाथ उसके दामों का चुकारा भी कर देते है, कहीं भी ऐसी गुंजाईश न हीं बचती कि वे सरकार का टेक्स या दामी की चोरी कर लेते है। बावजूद उन्हें कभी जीएसटी केे फैर में उलझाया जाता है और हाल में ई वे बिल पद्धति लागू कर देने से व्यापारी व्यापार करना तो भुल गया और हर समय कागजों का पेट भरने में उलझ गया। यहां तक की हर महिने रिटर्न भी भरना पड़ रहा है, जबकि ये कार्य वित्तिय वर्ष की समाप्ती के दौरान होता रहा है।

हम्माल अब करे तो क्या करें
कृषि उपज मंडी परिसर में एक समय था जब दो हजार से पांच हजार बोरी तक किसान अपनी उपज लेकर आता था, उसकी छणाई, तुलाई, बोरी भराई एवं ट्रकों में लदान तक करने से उसे अच्छा पाराश्रमिक मिल जाता जिससे अपने घर परिवार को दो जून की रोटी मिल जाती, लेकिन अब तब मंडी में उपज नहीं के बराबर आने लगी तभी से वह बेरोजगार सा हो गया और हमाली के अलावा अन्य कार्य करने का उसे अनुभव तक नहीं।

यूं चला मंदी का दौर
जनवरी में कपास की आवक 5607 बोरी रही जो घट कर फरवरी में 2888 बोरी पर आ गई, मार्च में 214 बोरी और अप्रेल में आवक बंद हो गई। यहीं हाल जीरे की आवक का रहा मार्च में 3382 बोरी अप्रेल में 15 बोरी मई में 1125 बोरी की आवक रही। रायड़ा मार्च में 647 बोरी आया अप्रेल में मात्र 50 बोरी और मई में आवक थम गई। इसी प्रकार मूंग, ग्वार, गेंहू और चने की आवक को किसानोंने मंदी के कारण मंडी में लाने से रोक रखा है। इससे व्यापारियों की हालत तो पतली हो चुकी है, वहीं किसान भी कहीं का नहीं रहा।

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