हिरणों के शिकार मामले में अमरीका के मिसूरी स्टेट की अदालत के जज ने एक शिकारी डेविड बैरी जूनियर को एनिमेटेड फिल्म दिखाने की सजा सुनाई है। उन्होंने सजा में कहा कि वॉल्ट डिज्नी की एनिमेटेड फि ल्म #Bambi ‘बाम्बी’ को माह में एक बार शिकारी को दिखाना होगा। इस फिल्म में हिरण के बच्चे को मां से बिछडऩे और उसके दर्द की कहानी को मार्मिकता के साथ पेश किया गया है। इस सजा के पीछे मंतव्य शिकारी की मन: स्थिति बदलना है। जिससे वह अपनी सजा पूरी करने के बाद पुन: शिकार ना करे। वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि यदि भारत में भी वन्यजीवों के शिकारियों के प्रति ऐसा प्रावधान हो तो सजा काटने के साथ उनका आगामी जीवन भी बदला जा सकता है।
जोधपुर जिले के वन्यजीव बाहुल्य क्षेत्र में पहले इस तरह की सजा सुनाई जाती थी। अखिल भारतीय विश्नोई महासभा अध्यक्ष हीराराम भवाल ने बताया, पहले वन्यजीव शिकार के आरोपी को करीब तीन माह तक गोशाला में सेवा करने की सजा भी सुनाई जाती थी। मृत चिंकारे की समाधि पर चबूतरा निर्मित कर चुग्गा स्थल बनाया जाता था। जोधपुर जिले के बुचेटी भोपालगढ़ रोड पर वन्यजीव शिकारी से चिंकारों का स्मारक भी बनवाया गया जहां आज भी लोग चुग्गा डालते हैं। अमरीकी अदालत के निर्णय की तर्ज पर भारत में शिकार प्रकरण के दोषी को वन्यजीव अभ्यारण्य में वन सुरक्षाकर्मियों के साथ रखा जाना चाहिए ताकि उन्हें वन्यजीवों की दिनचर्या और कुनबे से बिछडऩे का दर्द प्रत्यक्ष रूप से महसूस हो सके।
अखिल भारतीय विश्नोई महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रामनिवास बुधनगर बताते हैं, दशकों पूर्व गांवों में शिकार के आरोपी पकड़े जाने पर शिकारी से पक्षियों को बोरी भरकर ज्वार, मोठ, बाजरी आदि चुग्गा डलवाते थे। बिश्नोई टाईगर्स वन्य एवं पर्यावरण संस्था प्रदेशाध्यक्ष रामपाल भवाद कहते हैं, विश्नोई बाहुल्य गांवों में 1972 वन्यजीव संरक्षण अधिनियम से पहले वन्यजीव शिकार के मामले में परपंरागत रूप से पंचायती रखी जाती थी। उसमें शिकारी को पक्षियों के लिए मोठ या ज्वार इत्यादि डलवा कर दंडित किया जाता था। वन्यजीव अपराधी की ओर से अपराध स्वीकार कर लेने पर जीवों की सेवा करने का फ रमान सुनाया जाता था। शिकार के अपराधी को सजा के साथ उसकी मानसिकता बदलने के लिए विश्नोई समाज के वन्यजीवों की प्रति दया, पेड़ बचाने के लिए शहादत संबंधी साहित्य, चलचित्र दिखाए जाने चाहिए।
यूं समझें हिरण शिकार मामलों को
– सलमान प्रकरण के बाद जोधपुर वन्यजीव मंडल में वर्ष 1998 से 2017 तक वन्यजीव अपराध के कुल 780 मामले दर्ज हुए जिनमें 481 ऐसे मामले थे जिनको प्रशमन योग्य मानते हुए विभागीय स्तर पर निस्तारण कर दिया गया।
– वनविभाग की ओर से 113 प्रकरण में न्यायालय में परिवाद पेश किया गया और 88 मामलों में एफआर स्वीकृत हो गई।
– विभाग में शिकार प्रकरण के 50 मामले अभी तक पेंडिंग है। जबकि न्यायालय में 79 मामले विचाराधीन हैं।
– सलमान प्रकरण के बाद दो दशक के दौरान न्यायालय में कुल 34 शिकार प्रकरण के फैसले हुए हैं। विभिन्न शिकार प्रकरण में 9 आरोपियों को दोष सिद्ध किया गया।
आंकड़ों का आईना वर्ष — शिकार मामले
2001——-61
2002——46
2003——28
2004——20
2005—–33
2006—–61
2007—–20
2008—–63
2009—-41
2010—–33
2011—–76
2012—-60
2013—-26
2014—–15
2015—-06
2016—–06
2017—–13
2018—–15 सवाल : लम्बित क्यों हैं मामले
वन्यजीव अपराध घटित होने पर वनकर्मियों की ओर प्रथम अपराध की सूचना दर्ज तो कर ली जाती है लेकिन सभी मुकदमों का अनुसंधान समय पर नहीं हो पाता। इसलिए वर्ष दर वर्ष लम्बित अपराध प्रकरणों की संख्या बढ़ती जाती है। समय बीतने के साथ वन्यजीव अपराध साक्ष्य मिलने की संभावनाएं भी कम हो जाती हैं। गवाह आदि को पेशी पर आने-जाने के लिए कोई भत्ता नहीं मिलने से रूचि नहीं लेते।
चिंता : प्रदेश का गौरव, अब आधे ही बचे
राजस्थान में चिंकारे को राज्यपशु होने का गौरव प्राप्त है लेकिन संरक्षण के नाम पर राज्य सरकार का रवैया सदैव उदासीन रहा है। वन्यजीव गणना के अनुसार जोधपुर जिले में दो दशक पूर्व करीब 20 हजार से अधिक काले हरिण और चिंकारे थे जो अब घटकर 6 हजार 952 और काले हरिण मात्र 3232 ही बचे हैं।
हैरत : कुत्तों ने ही कर डाला 7497 हिरणों का शिकार
जोधपुर जिले में चिंकारे व ब्लेक बक एक दशक से कुत्तों की मौत मारे जा रहे हैं। वन अधिकारी कहते हैं, कुत्तों को पकडऩे का काम विभाग का नहीं है। ग्रामीण कहते हैं, खेतों की रखवाली के लिए श्वान से सस्ता चौकीदार कहां मिल सकता है। ऐसे में वन्यजीवों को हर साल हजारों की तादाद में बेमौत मरना पड़ रहा है। जिले के विभिन्न क्षेत्रों से वनविभाग के वन्यजीव चिकित्सालय में वर्ष 2009 से 2018 तक कुत्तों के हमलों में घायल कुल 10 हजार 521 चिंकारे व काले हिरण लाए गए। जिनमें से 7497 की मौत हो गई।