बेटियां बोझ नहीं पिता का सम्मान होती है
चन्द्रकला ने बताया कि बचपन से ग्रामीण परिवेश मिलने के बाद भी पिता कानाराम ने हमें बेटों से कम नही समझा। उनके मार्गदर्शन में बचपन से ही पढ़ाई के साथ खेलकूद की ओर अग्रसर रही। जिसकी वजह से एथलीट के तौर पर 1986 से 2014 तक लगातार खेलते हुए अंतरराष्ट्रीय मास्टर प्रतियोगिता बैंकॉक में भाग ले सकी।
चन्द्रकला ने बताया कि बचपन से ग्रामीण परिवेश मिलने के बाद भी पिता कानाराम ने हमें बेटों से कम नही समझा। उनके मार्गदर्शन में बचपन से ही पढ़ाई के साथ खेलकूद की ओर अग्रसर रही। जिसकी वजह से एथलीट के तौर पर 1986 से 2014 तक लगातार खेलते हुए अंतरराष्ट्रीय मास्टर प्रतियोगिता बैंकॉक में भाग ले सकी।
जीवन की कठिनाइयों में भी नहीं छोड़ा ग्राउण्ड
चन्द्रकला का विवाह परिवार की परिस्थितियों के कारण कम उम्र में हो गया। खेलकूद को विवाहित जीवन में बरकरार रखना कहीं हद तक ससुराल पक्ष में नही था। लेकिन पिता के प्रोत्साहन पर चन्द्रकला ने ग्राउण्ड नही छोड़ा ओर पुत्र व पुत्री के जन्म के पश्चात खेलते हुए अंतरराष्ट्रीय पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। स्नातक की शिक्षा भी शादी के बाद की। 2012 में पति के पैरालिसिस से ग्रसित होने पर चन्द्रकला ने परिवार की जिम्मेदारियों को उठाते हुए 2014 में आखिरी बार खेल कर अपने खेल जीवन पर पूर्ण विराम लगाया। खेल के साथ-साथ हैप्पी ऑवर्स स्कूल में बतौर शारीरिक शिक्षक कार्य किया। वर्तमान में नोबल इंटरनेशल स्कूल शिकारगढ में शारीरिक शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। परिवार की इन परिस्थितियों के बावजूद भी पुत्र को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में शिक्षा ग्रहण करवा कर उसे भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करवा रही हैं।
चन्द्रकला का विवाह परिवार की परिस्थितियों के कारण कम उम्र में हो गया। खेलकूद को विवाहित जीवन में बरकरार रखना कहीं हद तक ससुराल पक्ष में नही था। लेकिन पिता के प्रोत्साहन पर चन्द्रकला ने ग्राउण्ड नही छोड़ा ओर पुत्र व पुत्री के जन्म के पश्चात खेलते हुए अंतरराष्ट्रीय पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। स्नातक की शिक्षा भी शादी के बाद की। 2012 में पति के पैरालिसिस से ग्रसित होने पर चन्द्रकला ने परिवार की जिम्मेदारियों को उठाते हुए 2014 में आखिरी बार खेल कर अपने खेल जीवन पर पूर्ण विराम लगाया। खेल के साथ-साथ हैप्पी ऑवर्स स्कूल में बतौर शारीरिक शिक्षक कार्य किया। वर्तमान में नोबल इंटरनेशल स्कूल शिकारगढ में शारीरिक शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। परिवार की इन परिस्थितियों के बावजूद भी पुत्र को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में शिक्षा ग्रहण करवा कर उसे भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करवा रही हैं।
बेटी को अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज बनाने का सपना
पुत्री में अपने सपने को संजोते हुऐ उसे बचपन से ही मुक्केबाजी ओर प्रेेरित किया। पुत्री नेहा ने भी मां के सपने को पंख लगाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर मुक्केबाजी में राजस्थान का नाम रोशन करते हुए अन्तर विश्वविद्यायल मुक्केबाजी प्रतियोगिता में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के लिये रजत पदक हासिल किया। खेल के आधार पर ही नेहा का बीएसएफ में चयन हुआ। लेकिन वर्तमान में राजस्थान पुलिस में खेल कोटे से चयन होने पर बीएसएफ की नौकरी छोड़ यहां ज्वाइन किया। चन्द्रकला ने शादी के बाद खुद की तरह बेटी को खेलने के लिए संघर्ष ना करना पड़े, इसके लिए उसका विवाह ऐसे परिवार में किया जहां उसका पति राष्ट्रीय मुक्केबाज है और ससुर सागरमल धायल भी मुक्केबाजी में द्रोणाचार्य अवार्डी हैं।
पुत्री में अपने सपने को संजोते हुऐ उसे बचपन से ही मुक्केबाजी ओर प्रेेरित किया। पुत्री नेहा ने भी मां के सपने को पंख लगाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर मुक्केबाजी में राजस्थान का नाम रोशन करते हुए अन्तर विश्वविद्यायल मुक्केबाजी प्रतियोगिता में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के लिये रजत पदक हासिल किया। खेल के आधार पर ही नेहा का बीएसएफ में चयन हुआ। लेकिन वर्तमान में राजस्थान पुलिस में खेल कोटे से चयन होने पर बीएसएफ की नौकरी छोड़ यहां ज्वाइन किया। चन्द्रकला ने शादी के बाद खुद की तरह बेटी को खेलने के लिए संघर्ष ना करना पड़े, इसके लिए उसका विवाह ऐसे परिवार में किया जहां उसका पति राष्ट्रीय मुक्केबाज है और ससुर सागरमल धायल भी मुक्केबाजी में द्रोणाचार्य अवार्डी हैं।