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हिन्दी आलोचक डॉ.पल्लव ने कहा कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में राजस्थानी की बड़ी भूमिका

locationजोधपुरPublished: Aug 19, 2019 07:14:45 pm

Submitted by:

M I Zahir

जोधपुर. हिन्दी ( hindi literature ) गद्य-आलोचना में पिछले एक दशक के दौरान जिन लेखकों ने अपने बेहतरीन लेखन से साहित्यकारों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है,उनमें से एक सशक्त नाम है डॉ.पल्लव ( Dr. Pallava )। राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार में जन्मे डॉ.पल्लव की कहानी का लोकतंत्र और लेखकों का संसार पुस्तकें साहित्य का महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं तो मीरा : एक पुनर्मूल्यांकन, गपोड़ी से गपशप, एक दो तीन, और अस्सी का काशी शीर्षक से संपादित पुस्तकों का प्रकाशन किया है। वे साहित्य ( hindi literature ) -संस्कृति के विशिष्ट संचयन बनास जन का विगत दस वर्षों से सम्पादन कर रहे हैं। वे दिल्ली के हिन्दू कॉलेज में अध्यापन करते हुए साहित्य जगत में राजस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं। हाल ही में जोधपुर आए डॉ. पल्लव ( Dr. Pallava ) से हुई बातचीत ( interview ) के संपादित अंश :
 
 
 
 
 

Critic Dr. Pallava said that Rajasthani's big role in making Hindi

Critic Dr. Pallava said that Rajasthani’s big role in making Hindi

सेलिब्रिटी इन सिटी
जोधपुर. हिन्दी ( hindi literature ) गद्य-आलोचना में पिछले एक दशक के दौरान जिन लेखकों ने अपने बेहतरीन लेखन से साहित्यकारों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है,उनमें से एक सशक्त नाम है डॉ.पल्लव ( Dr. Pallava )। राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार में जन्मे डॉ.पल्लव की कहानी का लोकतंत्र और लेखकों का संसार पुस्तकें साहित्य का महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं तो मीरा : एक पुनर्मूल्यांकन, गपोड़ी से गपशप, एक दो तीन, और अस्सी का काशी शीर्षक से संपादित पुस्तकों का प्रकाशन किया है। वे साहित्य ( hindi literature ) -संस्कृति के विशिष्ट संचयन बनास जन का विगत दस वर्षों से सम्पादन कर रहे हैं। उन्हें भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता के युवा साहित्य पुरस्कार, वनमाली सम्मान, आचार्य निरंजननाथ सम्मान, राजस्थान पत्रिका सृजन पुरस्कार सहित कुछ और पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वे दिल्ली के हिन्दू कॉलेज में अध्यापन करते हुए साहित्य जगत में राजस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं। हाल ही में जोधपुर आए डॉ. पल्लव ( Dr. Pallava ) से हुई बातचीत ( interview ) के संपादित अंश :
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में हमारे प्रांत की ब्रज और राजस्थानी ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। अगर हिंदी को सचुमच राष्ट्रभाषा होना है तो सभी प्रांतों के श्रेष्ठ लेखन पर ध्यान देना होगा। राजस्थान के अकादमिक जगत की भी जिम्मेदारी है कि वह श्रेष्ठ लेखन को रेखांकित कर पहचान दिलाए।
डॉ.पल्लव ने कहा कि राजस्थान में कभी भी हिंदी की मुख्यधारा के लेखकों से कम लेखक नहीं थे। साहित्य का संग्राम क्षेत्र और मंडियां राजस्थान में नहीं होने के कारण हमारे साहित्यकारों की उपेक्षा हुई। कविता में नन्द चतुर्वेदी, नंदकिशोर आचार्य और ऋ तुराज हिंदी के आधुनिक कवियों की किसी भी सूची में अग्रगण्य हैं तो गद्य में रंागेय राघव, स्वयंप्रकाश और रघुनंदन त्रिवेदी ऐसे ही बड़े कथाकार हुए। आलोचना में फिर नंदकिशोर आचार्य के साथ मैं नवलकिशोर, मोहनकृष्ण बोहरा और माधव हाड़ा का नाम लूंगा। अच्छा होता कि हमारी अकादमी श्रेष्ठ लेखन को व्यापक लोगों तक ले जाती तो यहां के साहित्य को और बड़ी पहचान मिलती।
उन्होंंने कहा कि अच्छी रचना में केवल अच्छी अंतर्वस्तु पर्याप्त नहीं और न केवल अच्छे ढ़ंग से कहे जाना ही उसे बढय़िा बना देता है। जहां श्रेष्ठ विचार और कहन की मौलिकता या नयापन एक साथ मिले वहीं मेरे लिए अच्छी रचना संभव होती है।डॉ.पल्लव ने कहा कि कितनी खुशी की बात है कि एटा से निकल रही चौपाल पत्रिका ने हमारे आलोचक मोहनकृष्ण बोहरा पर अंक निकला। लघु पत्रिका आंदोलन की सार्थकता इसी बात में है कि वह अपने समय के सही सवालों को उठाए, अपने समय के सही लेखकों को प्रकाशित करे और सही लेखन को मूल्यवत्ता प्रदान करे।
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