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दिवाली की रात दीयों की लौ से मौसम का अनुमान लगाते थे बुजुर्ग

locationजोधपुरPublished: Nov 06, 2018 08:38:30 pm

Submitted by:

jitendra Rajpurohit

-जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जारी है रामा-श्यामा को अफीम मनुहार की परम्परा

Diwali night used to predict the weather from the flame of the Diyas

दिवाली की रात दीयों की लौ से मौसम का अनुमान लगाते थे बुजुर्ग

जोधपुर. दिवाली पर आधुनिकता के साथ बदलाव भी आया है। जोधपुर शहर की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी पुरातन परम्परा कायम है। आज भी जिस घर में किसी परिवार के सदस्य का निधन शोक हुआ है तो आसपड़ौस और मोहल्ले, समाज के लोग ही नहीं, बल्कि पूरे गांव के लोग दीपावली को उसके घर जाकर उस परिवार के सदस्यों के गम में शामिल होते हैं। जोधपुर जिले के सोइंतरा कला निवासी ७६ वर्षीय बुजुर्ग हनुमानसिंह ने बताया कि बदलाव की बयार के बावजूद अपणायत और हमारी कुछ परम्पराएं आज भी कायम है। दीपावली की रात जब हवा थमी रहती है तो शुभ माना जाता है। हवा चलना फसल के लिए खराब संकेत माना जाता है। दीपावली पर बचपन से ही लापसी और हलवा बनाते देखा है। अब कुछ दशक से चावल भी बनाने लगे है। बुजुर्गों के पास जाकर आशीर्वाद लेने की परम्परा में बदलाव आने लगा है। यह कड़वा सच है कि घरों में दीपावली की रामाश्यामा को आज भी अफीम की मनुहार जरूर की जाती है। मिठाई के पारम्परिक पकवान अब बाजार से भी खरीदे जाने लगे है। जोधपुर के बावड़ी तहसील के जोइंतरा पंचायत निवासी कंवराराम ग्वाला ने बताया कि दिवाली को महालक्ष्मी पूजन के समय मारवाड़ के खेतों में विशिष्ट उपज माने जाने वाले काचर, बोर एवं मतीरे के साथ सब्जी के रूप में प्रयुक्त किए जाने वाली चंवळे की फळियों, सक्करकंद, सेळड़ी (गन्ना), सीताफल, सिंघोड़ा आदि पिछले कुछ सालों से पूजन में गायब होती जा रही है। इसका कारण बारिश की कमी के साथ खेतों में ट्रैक्टर की तवी को घुमाने से जड़े खत्म हो रही है। महालक्ष्मी पूजन में प्रयुक्त खील-बताशे व सक्कर से बने खिलौने, चिपड़ा, कलम आदि से नई पीढ़ी दूर होती जा रही है। दीपावली पर मारवाड़ के खेतों में पैदा होने वाली विशिष्ट उपज जब पक कर तैयार होती है तो इसके लिए दिवाळी रा दीया दीठा…, काचर बोर मतीरा मीठा… कहावत खासी प्रचलित है। अर्थात दीपोत्सव के दीपक नजर आने के साथ ही विशिष्ट उपज काचरे, बोर व मतीरों में प्रकृति की मिठास प्रवेश होने के बाद पाचन योग्य बन जाते है। इस विशिष्ट उपज का सेवन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। काचर बोर पकने के बाद पित्त की समस्या से निजात मिलती है। अब नई पीढ़ी के बच्चों में इन ऋतु फल सेवन के प्रति उत्साह कम हो गया है। मेहरानगढ़ में महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश के विभागाध्यक्ष डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर ने बताया कि मारवाड़ के जोधपुर, नागौर, पाली, जालोर और बाड़मेर जिले में दिवाली का त्योहार उन्माद और आनंद से मनाया जाता रहा है। प्राचीन समय में जोधपुर शहर दो भागों में विभक्त रहा। एक भाग परकोटे के भीतर जिसमें पत्थरों के पक्के मकान थे तो दूसरा भाग ग्रामीण अंचल का, जिसमें परम्परागत शैली के कच्चे झोंपे घासफूस के होते थे। दीपावली पर छोटी सी चिंगारी कच्चे झोंपों के लिए परेशानी का कारण बनती थी। मारवाड़ के लोगों के जेहन में दिवाली के दिन आगजनी की एेसी कई घटनाएं आज भी भुलाए नहीं भूली जाती।
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