वर्ष 1951 पर होली के मुशायरे में मिला नाम
वर्ष 1951 की होली के दौरान आयोजित एक मुशायरा में न्यू अमेरिका नाम निकला और फिर बदली गांव की तस्वीर और तकदीर। असल में मुशायरे के दौरान यहां दो समूह बने थे। एक ने नाम रखा न्यू अमेरिका और दूसरे ने लालचीन। लालचीन धीरे धीरे गायब हुआ और न्यू अमेरिका नाम लोगों की जुबां पर चढ़ गया। वैसे यह गांव 300 वर्ष पहले बसा था।
लोर्डियां से न्यू अमेरिका तक का सफर
गांव के साथ अमेरिका जुड़ने के बाद यहां के कई लोगों ने मेहनत के बूते गांव की नई तस्वीर उकेरने का प्रयास किया। कई खेतीबाड़ी में जुटे तो कुछ लोग मुम्बई गए और वहां व्यापार में सफलता प्राप्त की। कमाई का काफी हिस्सा गांव के विकास पर खर्च किया। गांव में तीन सरकारी स्कूल, 12 निजी स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, जीएसएस, सभी मोहल्लों में पक्की सड़कें, पर्याप्त रोशनी व्यवस्था, खेल मैदान, तालाब सहित कई सुविधाएं हैं।
गांव एक भी कच्चा मकान नहीं है। विकास के लिए दानदाताओं की लम्बी कतार है, जो न केवल लोर्डिया बल्कि जिले में अधिकांश कार्यों में आगे रहते हैं। फलोदी में राजकीय महाविद्यालय निर्माण व अस्पताल में मिनी ट्रोमा सेन्टर, लटियाल माता मंदिर में लिफ्ट का निर्माण, जोधपुर के एमडीएम अस्पताल में बडी चिकित्सकीय यूनिट में यहां के भामाशाहों का योगदान रहा।
होली पर लिखी कविता से निकला नाम
इतिहासकारों के अनुसार जोधपुर जिले के लोर्डिंया गांव का नाम न्यू अमेरिका नाम प्रचलन में आने के पीछे होली पर गांव के दो राजनीतिक दलों की आपसी तुकबंदी और प्रतिस्पद्र्धा रही। स्वतंत्रता सैनानी गोपीकिशन कठिन सरल जो कम्युनिष्ट नेता थे, उन्होंने चीन की बढती ताकत का हवाला देकर अपनी कविता चीन में बेली म्हारो रातों सूरज उगो रे…पढ़ी।
उन्होंने लोर्डियां को लालचीन नाम से सम्बोंधित किया। दूसरे दल के हीरालाल कल्ला, तुलसीदास कल्ला, शिवकरण करण बोहरा, बिलाकीदास बोहरा व बंशीलाल कल्ला ने चीन को पटखनी देने के लिए ताकत दिखा रहे अमेरिका का उल्लेख कर लोर्डिया को न्यू अमेरिका नाम दे दिया, जो धीरे—धीरे पहचान बन गया।
इन्होंने कहा
आजादी के बाद गांव में दो विचारधाराओं के लोग थे। कम्युनिस्ट और नॉन कम्युनिस्ट। 1951 की होली के दिन गोपीकिशन ने कविता में लोर्डियां का नाम लालचीन दिया तो दूसरे दल ने न्यू अमेरिका। फिर लोर्डिंया का उपनाम न्यू अमेरिका प्रचलन में आता गया।
-कन्हैयालाल जोशी, इतिहासकार व गांव के प्रथम शिक्षक