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कोरोनाकाल में संक्रमण के साथ श्वानों का भी शिकार हुए लोग

locationजोधपुरPublished: Jun 15, 2021 11:42:28 am

जोधपुर में रोजाना बीस लोग हो रहे डॉग बाइट का शिकार

 कोरोनाकाल में संक्रमण के साथ श्वानों का भी शिकार हुए लोग

कोरोनाकाल में संक्रमण के साथ श्वानों का भी शिकार हुए लोग

अभिषेक बिस्सा/जोधपुर. कोरोनाकाल के दौरान सूर्यनगरी में हजारों लोग श्वानों का भी शिकार होकर अस्पताल पहुंचे। पिछले दो साल में पंद्रह हजार से ज्यादा लोगों को श्वानों ने काट लिया। औसतन २० लोग रोजाना डॉग बाइट का शिकार होकर महात्मा गांधी अस्पताल की एंटी रेबीज क्लिनिक में पहुंच रहे हैं। यहां दर्ज आंकड़ों के अनुसार वर्ष २०२०-२१ में ९१३० लोगों को श्वानों ने काटा, वहीं इस साल अब तक ६६३९ लोग श्वानों का शिकार होकर अस्पताल पहुंच चुके हैं।
दो बार लंबे लॉकडाउन व साप्ताहिक वीकेंड कफ्र्यू जैसे हालात में शहर की सडक़ें सूनसान होने पर बाहर निकले कई लोगों को श्वानों ने वाहनों के पीछे भागकर घायल किया या काट खाया। इन लोगों को टिटनेस इंजेक्शन के साथ एंटी रेबिज टीके तक लगाने पड़े।
लगातार बढ़ रही संख्या
शहर में श्वानों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। हर गली-मोहल्लों में दस फीट के दायरे में एक दर्जन से अधिक श्वान दिख जाते हैं। नगर निगम में शिकायत के बावजूद बहुत कम कार्रवाई हो पाती है।
जख्मी भी होते हैं वाहन चालक
श्वानों के वाहन चालकों के पीछे भागने के कारण कई दुर्घटनाएं होती हैं। एमडीएम अस्पताल के ट्रोमा सेंटर में हर सप्ताह ऐसे हादसों में घायल होकर औसतन दो-तीन केस पहुंच जाते हैं। एेसे मामलों में यहां टिटनेस लगाकर मरीज को एंटी रेबिज लगाने के लिए गांधी अस्पताल भेजा जाता है।
घायल हल्दी-मिर्च और चूना नहीं लगाएं
जब भी आपको श्वान काटे तो घाव को १५ मिनट तक बहते पानी में साबुन से रगड़ कर धोएं। उसके ऊपर मिर्ची, हल्दी व चूना आदि न लगाएं, क्योंकि इससे इंफेक्शन व रेबिज वायरस का अंदर जाने का खतरा बढ़ जाता है। अस्पताल में चिकित्सक जानवर के काटे घाव को विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमानुसार कैटेगरी में चिह्नित करते हैं। इसके अनुरूप वैक्सीन या सिरम देने का निर्णय लेते हैं। घायल को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचना चाहिए।
– डॉ. अफजल हकीम,
विभागाध्यक्ष, सामुदायिक चिकित्सा विभाग, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज
स्ट्रीट डॉग की केयर नहीं होना बना बड़ी वजह
जोधपुर. स्ट्रीट डॉग्स के काटने की मुख्य वजह कोरोना और लॉकडाउन ही है। इस समय स्ट्रीट डॉग की केयर नहीं हो पा रही है। पूर्व में दुकानें खुली होने के दौरान कई लोग धर्मपूर्वक व दयापूर्ण स्थिति में इन्हें दूध पिलाते और बिस्किट आदि खिलाते थे, लेकिन कोरोना में दुकानें खुल नहीं रही है। जनता घरों से बाहर नहीं निकल रही है। लोग खुद तंगी की स्थिति में हैं। इस कारण उनकी केयर नहीं हो रही है। इस वजह से स्ट्रीट डॉग परेशान भी हैं। शहर में सडक़ें भी सूनसान हैं। हमारी नई पीढ़ी पशु प्रेमी है। बच्चे घर पर पेट डॉग्स लाते हैं। इन डॉग्स के दांत आदि आने पर ये भी घरों में कई बार अपने मालिक व उनके परिजनों को काट खाते हैं। पेट डॉग्स के शिकार लोग भी अस्पतालों में एंटी रेबिज इंजेक्शन लगाने पहुंचते हैं। लॉकडाउन में पेट डॉग की बिक्री बढ़ी है। पहले एनिमल बर्थ कंट्रोल प्रोग्राम चलता था, जो बंद है। इसमें डॉग्स की नसबंदी होती थी। कुछ सालों में शहर में डॉग्स की आबादी बढ़ी है। ये ही प्रमुख कारण है कि शहर में डॉग्स बाइट की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है।
– डॉ. एलपी व्यास, वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी, पशु पालन प्रशिक्षण संस्थान जोधपुर
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