
एक कार्यक्रम के दौरान जोधपुर के बद्रीकिशन व्यास और उनका परिवार (फोटो: पत्रिका)
Inspiring Story Of Badri Kishan Vyaas: जोधपुर, उम्र के इस पड़ाव पर जब लोग खुद सहारे की उम्मीद करते हैं, वहीं 84 वर्षीय बद्री किशन व्यास दूसरों के सहारा बन गए है। कृषि विभाग से मिलने वाली पेंशन, जीवन भर की छोटी-छोटी बचत और दिवंगत पत्नी की सोच को साकार करते हुए व्यास दिव्यांगों की सेवा में जुटे हैं।
हाल ही में उन्होंने उदयपुर स्थित संस्थान में दिव्यांग नावाच्या कथा उपचार और पुनर्वास के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए। खुद पैर की तकलीफ के कारण परेशानी झेल रहे व्यास कहते हैं- 'दर्द समझने से ही किसी के दर्द को मिटाने की इच्छा जन्म लेती है।' शायद यही कारण है कि अपने संघर्षो को समाज की ताकत बनाते हुए उन्होंने आर्थिक क्षमता से अधिक बड़ा दिल दिखाया।
परिवार की ओर से अब तक 17.25 लाख रुपए का सहयोग अस्पताल निर्माण, ऑपरेशन और कृत्रिम अंग वितरण जैसे कार्यों में किया गया है।
व्यास के पौत्र प्रशांत बताते हैं कि दादीजी भी शिक्षिका थीं और शिक्षा तथा सेवा दोनों को वे उपहार की तरह मानती थीं। 2020 में जब महामारी के समय दादीजी का निधन हुआ, परिवार सबसे कठिन स्थिति में था। सीमित आय के बावजूद दादाजी ने मुख्यमंत्री सहायता कोष में दो लाख रुपए दान कर दिया। उन्होंने कहा था जो दूसरों के काम आ जाए, वही असली श्रद्धांजलि है।
आज भी बद्री किशन व्यास किसी बड़े व्यवसायी की तरह नहीं, एक साधारण पेंशनधारी की तरह रहते हैं। कृषि, पेंशन और परिवार की साधारण आय से चल रहा यह सहायता सफर समाज में उस सोच को मजबूती देता है कि सेवा धन की नहीं, दिल की क्षमता से की जाती है। मानवता की इस विरासत ने उन्हें सिर्फ दानवीर नहीं, बल्कि रियल हीरो बनाया है।
Updated on:
10 Dec 2025 03:03 pm
Published on:
10 Dec 2025 02:57 pm
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