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Rajasthan: 5 बेटों के पिता को 70 साल की उम्र हुआ कैंसर, बेटों ने झगड़ा करके घर पर कर लिया कब्जा, रुला देगी बेबस पिता की ये दर्दनाक कहानी

Chittarmal Kumawat: बुजुर्ग पिता ने बेटों के लिए जिंदगी खपा दी लेकिन बुढ़ापे में वहीं बेटे उसे आश्रय से भी वंचित कर गए। कैंसर से लड़ रहे 70 वर्षीय छीतरमल आज अधूरी छत के नीचे इलाज और सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं।

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Chittarmal

कैंसर पीड़ित 70 वर्षीय छीतरमल कुमावत (फोटो: पत्रिका)

Emotional Story Of Cancer Patient: कुचामनसिटी शहर के नली के बालाजी की संकरी गलियों में इन दिनों एक बूढ़ी जिंदगी की टूट्टी उम्मीदें धड़क रही है। यह दर्द है 70 वर्षीय पिता छीतरमल कुमावत का, जिसने अपनी पूरी उम्र बेटों का भविष्य संवारने में लगा दी, लेकिन बुढ़ापे में उन्हीं बेटों ने पिता का आश्रय तक छीन लिया।

छितरमल पिछले ढाई साल से कैसर से जूझ रहे है। यह बीमारी शरीर को तोड़ती है, लेकिन 5 बेटों के पिता छीतरमल की इससे भी बड़ी पीड़ा है उनके तीन बड़े बेटों सत्तुराम, प्रेमाराम और बीरमाराम की ओर से उन्हें घर से निकाल देना। अपनी जीवनभर की कमाई और मेहनत से जिस घर और जमीन को उन्होंने बनाया, आज उसी पर उनका कोई हक नहीं। बेटों ने उस संपत्ति पर कोर्ट से स्थगन आदेश (कोर्ट स्टे) ले रखा है।

बुजुर्ग पिता अब अपनी जमीन पर पैर तक नहीं रख सकता। कैंसर के इलाज के लिए रुपए जुटाना उसके लिए पहाड़ चढ़ने जैसा हो गया है।

अधूरी दीवारें, कच्ची छत के नीचे शरण

छीतरमल की पत्नी का निधन हो चुका है। वह आज छोटे बेटे धर्मचंद और पांचूराम के साथ एक अधूरे निर्माण वाली कच्ची छत के नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं। यहां उसने बड़े बेटों से हुए झगड़े के बाद शरण ले रखी है। लेकिन उनकी पीड़ा यहां भी कम नहीं हुई।

मकान और जमीन पर स्थगन आदेश के बावजूद बड़े बेटे विवादित जमीन पर फिर से कब्जा करने में जुट गए हैं। लकड़ी, मलबा और अन्य सामान डालकर वहां अतिक्रमण कर रहे हैं। हरकत ऐसी कि पिता नहीं किसी बेगाने की जमीन हो। यह सब देखकर छीतरमल की आंखों में दर्द से ज्यादा बेबसी नजर आती है। वह उन्हें रोक नहीं सकते और लड़ भी नहीं सकते।

अदालत, दफ्तर और थानों के चक्कर

छीतरमल और उनके छोटे बेटों ने कई बार पुलिस और प्रशासन को इसकी शिकायत दी। लेकिन राहत नहीं मिली। अदालतों, दफ्तरों और थानों के चक्कर लगाकर छीतरमल की बीमारी और बढ़ गई है। जिस उम्र में संतान का सहारा मिलना चाहिए, उस उम्र में वे अपने कदम घसीटते हुए दूसरों के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। बूढ़ी आंखों में अब सिर्फ एक उम्मीद बची है कि कोई सरकारी या सामाजिक संगठन उनके इलाज, उनकी छत और सम्मान के लिए आगे आए।


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