7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Dussehra 2025: राजस्थान में यहां है रावण का ससुराल, जहां शादी भी हुई और मंदिर भी बना, जानें शोक की परंपरा

Ravan Dahan: जोधपुर को रावण का ससुराल कहा जाता है। जानें मंडोर विवाह स्थल, रावण मंदिर और दशहरे पर यहां निभाई जाने वाली अनोखी परंपरा के बारे में।

2 min read
Google source verification
Ravan Ka Sasural

फाइल फोटो- पत्रिका

जोधपुर। दशहरे के अवसर पर जहां पूरे देश में रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है, वहीं जोधपुर में इसका अगल ही रूप देखने को मिलता है। दरअसल जोधपुर को रावण का ससुराल कहा जाता है। मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका मंडोर में था।

कहा जाता है कि मंडोर रेलवे स्टेशन के सामने एक प्राचीन स्थल है, जहां रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ था। इसी वजह से इस जगह को आज भी विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है। हालांकि इतिहासकार इस दावे के प्रमाण नहीं मानते, लेकिन स्थानीय परंपराओं और दंतकथाओं ने इसे विशेष पहचान दिला दी है। दंत कथाओं के अनुसार मंदोदरी मंडोर की राजकुमारी और मायासुर और उसकी पत्नी हेमा की बेटी थी। बाद में उसने रावण से विवाह किया और लंका की रानी बन गई।

मंडोर कभी मारवाड़ की राजधानी रहा

वहीं गुप्त लिपि में कुछ अक्षरों के आधार पर मंडोर में नागवंशी राजाओं का राज्य रहा था। नागवंशी राजाओं के कारण यहां पर नागादडी याने नागाद्री जलाशय नाग कुंड भी है। बता दें कि मंडोर कभी मारवाड़ की राजधानी रहा था। उसका प्राचीन नाम मांडव्यपुर या मांडवपुर था।

बाद में राव जोधा को यह जगह असुरक्षित लगी, तो उन्होंने चिड़ियाकूट पहाड़ी पर मेहरानगढ़ किला बनवाया और नई नगरी जोधपुर बसाई। आज मंडोर उद्यान में जनाना महल, एक थंबा महल, देवताओं की साल, चौथी शताब्दी का किला और शासकों के देवल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इन्हीं धरोहरों के बीच रावण-मंदोदरी विवाह स्थल भी चर्चा में रहता है।

रावण की प्रतिमा भी स्थापित

जोधपुर में रावण को लेकर एक और खास परंपरा है। किला रोड स्थित अमरनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में रावण की प्रतिमा स्थापित की गई थी। यहां विजयदशमी पर न तो रावण का पुतला दहन होता है और न ही उत्सव मनाया जाता है, बल्कि श्रीमाली ब्राह्मण समाज के दवे गोधा गोत्र परिवार शोक प्रकट करते हैं।

मंदिर में रावण के साथ मंदोदरी की भी मूर्ति है और हर साल दोनों की पूजा की जाती है। पुजारी पं. कमलेश कुमार दवे बताते हैं कि दशहरे के दिन मंदिर प्रांगण में रावण की मूर्ति का अभिषेक व विधि विधान से रावण की पूजा की जाती है। शाम को रावण दहन के बाद दवे गोधा वंशज के परिवार स्नान कर नूतन यज्ञोपवीत धारण करते हैं।