विधानसभा चुनावों में बहुत रोचक
राजनीतिक प्रेक्षकों और आम आदमी के लिए यह बहुत दिलचस्प बात है कि पत्रकार और शिव विधायक मानवेन्द्रसिंह अब मुख्यमंत्री वसुंधराराजे के सामने कांग्रेस से झालरापाटन से चुनावी मैैदान में हैं। इससे बाड़मेर-जैसलमेर ही नहीं, इस घोषणा ने पूरे राजस्थान में राजनीति की चाय के प्याले में तूफान ला दिया है। दोनों की चिर-परीचित राजनीतिक दुश्मनी और आमना-सामना विधानसभा चुनावों में बहुत रोचक हो गया है। कांग्रेस के इस फैसले ने हाल ही में कांग्रेसी हुए मानवेन्द्र को बड़ी चुनौती के समर में उतार दिया है। इधर बाड़मेर-जैसलमेर में मानवेन्द्र समर्थक इससे खुश है कि हैसियत दिखाई तो उनके विरोधी चटखारे लेने लगे हैं कि राजनीतिक मुकाबले में जनाधार का फैसला हो जाएगा।
मूंछ की लड़ाई ध्यान रहे कि जसवंत परिवार और वसुंधराराजे के बीच 2014 के लोकसभा चुनाव बाद से ही खुली राजनीतिक दुश्मनी शुरू हो गई थी। तब जसवंतसिंह को टिकट नहीं मिला और वसुंधराराजे ने यहां चुनावों में घोषणा की थी कि यह मूंछ की लड़ाई है। मानवेन्दसिंह गत 17 अक्टूबर को कांग्रेस में शामिल हो गए थे, लेकिन उनके विधानसभा चुनाव लडऩे का कोई इरादा नहीं बताया गया था।
राहुल-मानवेन्द्र की मुलाकात के बाद
बताया जाता है कि शुक्रवार को दिल्ली में
राहुल गांधी और मानवेन्द्रसिंह की मुलाकात हुई थी। इसमें कांग्रेस की पहली सूची में टिकट वितरण को लेकर दोनों में चर्चा हुई और इसके बाद राहुल गांधी ने मानवेन्द्र को झालरापाटन से चुनाव लडऩे का संकेत दे दिया था।
बाड़मेर-जैसलमेर की राजनीति पर असर बहरहाल मानवेन्द्र के कांग्रेस ज्वाइन करने से बाड़मेर-जैसलमेर में राजपूत वोटर्स का फायदा कांग्रेस को मिलना था। इसे भांपते हुए भाजपा ने टिकट वितरण में चार राजपूत तो उतारे ही, पोकरण से महंत प्रतापपुरी को टिकट दिया, जो राजपूत समाज के संत हैं। इसे मानवेन्द्र का तोड़ माना जा रहा है, लेकिन शुक्रवार को मानवेन्द्र को झालरापाटन से मुख्यमंत्री के सामने टिकट देने से एक बार फिर उनके राजनीतिक कद बढऩे को लेकर माहौल बदला है।