
काजरी परिसर में लगे मालाबार नीम के पेड़। फोटो पत्रिका
गजेंद्र सिंह दहिया
Good News : राजस्थान के किसानों की बल्ले बल्ले। अब राजस्थान के किसान भी मालामाल होंगे। कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल के अलावा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों और ऑस्ट्रेलिया में ईंधन और इमारती लकड़ी के स्रोत के रूप में लोकप्रिय मालाबार नमी का केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) ने जोधपुर की जलवायु में भी बेहतर उत्पादन कर दिया है।
काजरी ने चार साल पहले ट्रायल के तौर पर अपने परिसर में इसे लगाया। यहां की जलवायु में भी यह अनुकूल हो गया। आधा फीट का पौधा अब बढ़कर 20 फीट का हो गया है।
प्रदेश में बहुतायात से पाए जाने वाले सामान्य नीम से यह भिन्न है। यह पेड़ अपनी तेज विकास दर और कम रखरखाव के कारण किसानों के लिए नकदी फसल के रूप में जाना जाता है। अगले साल प्रयोग का अंतिम साल है। इसके बाद काजरी इसे किसानों के लिए उपलब्ध करवा देगी। यह प्रयोग काजरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. धीरज सिंह के मार्गदर्शन में वैज्ञानिक डॉ. अर्चना वर्मा कर रही है।
मालाबार नीम का चार साल का ट्रायल सफल रहा है। थार की जलवायु में भी इसका बेहतरीन उत्पादन हो रहा है। भविष्य में इसकी किसानों के लिए अनुशंषा की जाएगी।
डॉ. धीरज सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, काजरी जोधपुर
राजस्थान में मालाबार नीम नहीं होता है। काजरी ने देहरादून और कोयम्बटूर से करीब 500 मालाबार नीम के पौधे मंगाए। ये आधा फीट लम्बे और इनका तना पांच मिलीमीटर का था। अब यह 20 फीट लम्बा और तना 15 सेंटीमीटर का हो चुका है। इसके तने की मोटाई और बेहतरीन लकड़ी के कारण इसका उपयोग प्लाईवुड इण्डस्ट्री, पेपर इण्डस्ट्री और पैकेजिंग इण्डस्ट्री में होता है।
एक पौधे की लागत लगभग 10 रुपए है। यह छह से आठ साल में एक पेड़ चार-पांच क्विंटल लकड़ी दे सकता है, जिसकी कीमत 800-900 रुपए प्रति क्विंटल हो सकती है। चार एकड़ में 5,000 पेड़ लगाकर आठ वर्षों में 50 लाख तक की कमाई संभव है।
Published on:
18 Jul 2025 07:26 am
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