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इन कारणों से डूबा प्रदेश का एकाधिकार वाला ग्वार उद्योग, हजारों मजदूर कर रहे पलायन

पश्चिमी राजस्थान में देश का 80 प्रतिशत उत्पादन  

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अमित दवे/जोधपुर. प्रदेश में एकाधिकार रखने वाला ग्वारगम उद्योग चौपट हो गया है। ग्वार व ग्वारगम उद्योग को लेकर 20-25 वर्ष पूर्व किसानों, ग्वारगम उद्यमियों, निर्यातकों, व्यापारियों व सटोरियों को ग्वार के लिए जबरदस्त उत्साह था। पिछले कुछ वर्षों में वायदा कारोबार व वैश्विक मंदी ने ग्वारगम उद्योग व इससे जुड़ी इकाइयों को संकट में डाल दिया है। खाद्य पदार्थ व ग्वार को वायदा कारोबार एनसीडीईएक्स में शामिल करने के बाद यह उद्योग धरातल पर आ गया है। ग्वार को अमरीका, अफ्रीका व आस्ट्रेलिया में उगाया जाने लगा है। चीन, ओमान व अमरीकी आदि देशों में तो ग्वार के उद्योग लग गए हैं। इससे विदेशों में ग्वारगम की मांग घट गई है। इसके अलावा, ग्वार के दूसरे विकल्प जैसे सीएमसी व कार्बनिक विकल्प के रूप में इमली, कैसिया आदि उपलब्ध हो गए हैं। इससे बड़ी संख्या में मजदूर बेरोजगार हुए और पलायन कर गए। उद्यमियों ने अपने उद्योग बदले तो कई अभी भी इस उद्योग के पुनर्जीवित होने की आस में बैठे हैं।

पहले थी 300, अब रह गई 4 फैक्ट्रियांविश्व का करीब 80 प्रतिशत ग्वार का उत्पादन पश्चिमी राजस्थान में होता है। करीब 14 प्रतिशत पाकिस्तान में तथा शेष अमरीका आदि देशों में होता है। उद्योग की दृष्टि से वर्ष 1962 में राज्य में 2-3 फैक्ट्रियां थी, यू कहें कि यह वर्ष ग्वारगम उद्योग की शुरुआत थी। इसके बाद 1975 में 5 फैक्ट्रियां संचालित हुई, जो 1980 में बढकऱ 125 हो गई। वर्ष 2012-13 तक प्रदेश में करीब 300 फैक्ट्रियां संचालित हो रही थी। इसके बाद इस उद्योग में गिरावट आने लगी। वर्तमान में प्रदेश में 30 फैक्ट्रियां भी पूरी तरह से संचालित नहीं हो रही हैं, जोधपुर शहर की बात करें तो यहां केवल 2-4 फैक्ट्रियां संचालित हो रही हैं।

पूर्व में ग्वारगम निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक सहयोग मिलता था। बाद में, इसे समाप्त कर दिया गया । वायदा कारोबार व सटोरियों की वजह से ग्वारगम व ग्वार उद्योगों पर बोझ बढ़ गया है। सरकार वायदा कारोबार से ग्वारगम को हटा दे तो यह उद्योग पुन: फलेगा-फूलेगा। अगले माह में ग्वारगम पर होने वाली सेमिनार में इस उद्योग को पुनर्जीवित करने पर मंथन होगा।

भंवरलाल भूतड़ा, अध्यक्ष, ग्वारगम मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन