कुरजां या डेमोसाइल क्रेन नाम वाला यह पक्षी प्रति वर्ष सर्दी में भारत आता है और प्रजनन के बाद मार्च माह तक लौट जाता है। पूर्वी और मध्य एशिया, कजाकिस्तान, चीन, उक्रेन, मंगोलिया समेत कई ठंडे इलाकों वाला यह पक्षी हजारों की संख्या में एक साथ उड़ान भरता है।
क्षेत्र की झीलों तथा खीचन में तो कुरजां को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक जुटते हैं। इन पक्षियों को खारच भूमि का कटे-फटे तट वाला जलीय इलाका पसंद आता है। इस बार जिन-जिन तालाबों में पानी की अच्छी आवक रही तथा भरे हुए हैं, उन तालाबों में इनकी आवक बहुतायत में हुई है। ग्रामीण बताते हैं कि बीते दशकों से ये पक्षी अक्सर यहां नजर आते हैं और एक डेढ़ माह रुकने के बाद पलायन कर जाते हैं।
कीटनाशकों से खतरा इनको सर्वाधिक खतरा कीटनाशकों से होता है। खरीफ की फसलों में उगने वाला बाजरा, मूंग, मोठ इसका प्रिय खाद्य है। इन पर उपयोग किया जाने वाला कीटनाशक कई बार इन पर घातक रहता है। इसी तरह औद्योगिक और आवासीय भू-परिवर्तन की वजह से तालाबों में पानी की आवक के क्षेत्र अवरुद्ध होने से भी समस्या उत्पन्न हो रही है।
समझ वाली है कुरजा उड़ती कुरजां म्हारो संदेशो लेती जाइजे ऐ… और कुरजां ए म्हारा भंवर मिला दिजे रे, जैसे राजस्थानी गीतों में वर्णित यह पक्षी शर्मीला और समझदार है। खेतों में दाने चुगते समय एक पक्षी आसपास नजर रखता है। खतरा नजर आने पर आवाज करके अपने साथियों को संकेत करता है। इसी तरह रात्रि में यह खुले में विश्राम करता है, ताकि खतरे से बचने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके।