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पाकिस्तान से आकर शराब बेचने के बाद धर्म को बनाया धंधा, यूं आसुमल से बना आसाराम

उसके समर्थकों को संभालना एकबारगी पुलिस के भी पसीने छुड़ा देता है।

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verdict on asaram will come on 25th april

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जोधपुर . अपने ही आश्रम की नाबालिग से दुष्कर्म मामले में सजा काट रहे आसाराम को लेकर कल आखिरकार फैसला आ ही जाएगा। इसका न सिर्फ आसाराम को इंतजार है बल्कि जेल के बाहर उसका इंतजार कर रहे हजारों समर्थकों सहित आमजन भी उत्सुक है। जोधपुर में एक ओर जहां पुलिस जाप्ता ने चाक चौबंद इंतजाम किए हैं। वहीं आसाराम से जुड़े मामले की पल-पल की खबर पर लोग नजर गाढ़े बैठे हैं। अपने समर्थकों से विभिन्न उपाधियां प्राप्त करने वाला आसाराम असल में क्या था, क्या आपको मालूम है? शायद कुछ लोगों के पास ही इसका जवाब होगा...

तो चलिए हम आपको बता देते हैं कि एक साधारण से घर में जन्मा आसाराम का असल नाम आसुमल सिरुमलानी है। पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान से भारत आकर उसने यहां कई काम किए फिर आखिर में धर्म को अपने निशाने पर लिया। करोड़ों की संपति का मालिक आसाराम का पिता किराणे की दुकान चलाता था। जहां उसके पिता की अधिक कमाई भी नहीं थी। सैकड़ों आश्रमों का संचालक आसाराम बचपन में अपने परिवार के साथ विभाजन के बाद हिंदुस्तान आया और अहमदाबाद में आकर रहने लगा। पहले चाय की छोटी दुकान चलाई। छोटी उम्र में पिता के निधन के बाद दुकान के जरिए ही गुजारा चलता रहा। फिर एक पुलिस केस हो जाने के कारण आसुमल सरदारनगर चला गया।

स्वामी लीलाशाह को बनाया गुरु


यहां चाय की दुकान चलाने वाले आसुमल ने बड़ा काम करने की सोची और कुछ दोस्तों के साथ शराब के धंधे में हाथ आजमाया। कुछ साल यह काम करके छोड़ दिया और दूध की दुकान पर नौकरी की। यहां से भी वह वापस गायब हो गया। छोटी उम्र में ही शादी होने के बाद उसने आश्रम खोलकर धर्म का व्यवसाय ऐसा शुरू किया कि फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। विभिन्न तीर्थों के उसने चक्कर काटे और आखिर में वृंदावन के स्वामी लीलाशाह को अपना गुरु बनाया और वहां से उसे नाम मिला आसाराम...।

बिड़ला मंदिर से किया प्रचार-प्रसार


आसुमल से आसाराम बन उसने आध्यात्म में समय व्यतीत कर कई सालों तक यात्राएं की और अपने सिद्धांत बांटे। 1971 में अहमदाबाद में स्वामी सदाशिव के आश्रम में आकर रहा। बाद में अपना अलग संस्थान शुरू किया। इसमें उसे कुछ व्यापारियों का सहयोग भी मिला। उसका पहला कार्यक्रम मार्च 1989 में दिल्ली के बिड़ला मंदिर में हुआ था। और साधु संतों को सुनने आने वाले श्रद्धालुओं के बीच खुद का प्रचार-प्रसार किया। इसके पांच साल बाद 1994 में लालकिला मैदान में फिर कार्यक्रम किया। जिसमें हजारों श्रोता पहुंचे। यह प्रचार-प्रसार फिर ऐसा फैला कि आज आसाराम के समर्थकों की संख्या करोड़ों में बताई जाती है। जब भी जोधपुर में सुनवाई के लिए आसाराम निकलता है तो उसके समर्थकों को संभालना एकबारगी पुलिस के भी पसीने छुड़ा देता है। इस कारण इस बार की सुनवाई जेल में किए जाने का निर्णय कोर्ट ने किया है।