कठिन चुनौती की घड़ी गहलोत ने बताया कि देश की स्वतंत्रता के समय राजपूताना की देसी रियासतों के भारत संघ में विलय को लेकर देसी शासकों व राजनीतिज्ञों के मध्य चली कशमकश भारत की अंतरिम सरकार के लिए कठिन चुनौती की घड़ी थी। राजपुताने के 19 रजवाड़ों और 3 छोटी रियासतों के पाकिस्तान में विलय की संभावना पाकिस्तान के निर्माता जिन्ना के लिए सुखद सपना थी तो दूसरी ओर लोगों के लिए यह असहनीय था। वहीं भारत सरकार ‘विलय का सिद्धांत बड़ी रियासतों पर लागू नहीं होगा’ के अपने पूर्व निर्णय की वचनबद्धता में फंसी हुई थी। जोधपुर रियासत के शासक अन्य रियासत के शासकों की तरह देश की स्वतंत्रता से पूर्व राष्ट्र में चल रहे आंदोलन को देखते हुए आने वाले प्रजातंत्र के समय को लेकर चिंतित थे।
भारत संघ में अधिमिलन पत्र दूसरी ओर भारत सरकार के निर्धारित मापदण्डों के अनुसार पृथक अस्तित्व रखने के वायदे के प्रति आशंकित रहते हुए भी कुछ कुछ आश्वस्त भी थे। इस क्रम में जोधपुर के तत्कालीन महाराजा उम्मेदसिंह को आधुनिक जोधपुर का निर्माता भी कहा जाता है, जिसके क्रम में उन्होंने सन 1935 के अधिनियम के अन्तर्गत प्रस्तावित भारत संघ में अधिमिलन पत्र भर कर वायसराय को दिया था, लेकिन देश की स्वतंत्रता के समय ही 9 जून 1947 को उम्मेदसिंह की आकस्मिक मृत्यु होने से रियासत के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लग गया था।
माउंटबेटन के पास गए और वार्ता की युवा महाराजा हनवंतसिंह जोधपुर रियासत की गद्दी पर बैठे और भारत संघ के समर्थक थे, लेकिन इस मामले में उनकी भूमिका को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई थी। वे अपने राज्य के लिए अधिकतम सुविधा प्राप्त करना चाहते थे। जोधपुर रियासत के पाकिस्तान में शामिल होने की सुगबुगाहट से माहौल तनावपूर्ण होने लगा था। हनवंतसिंह 8 अगस्त 1947 को दिल्ली पहुंच कर गर्वनर जनरल माउंटबेटन के पास गए और वार्ता की थी।