उनकी और मेरी मानसिकता अधिक से अधिक काम करवाने की थी। मेरे समय में सरकार भाजपा की थी और बोर्ड कांग्रेस का था। ऐसे में बजट की सबसे ज्यादा समस्या रही। सरकार का सहयोग कम था। सरकार ने चुनौती दी कि खुद कमाओ और खर्च करो। इसे भी हमने स्वीकार किया। सरकारी विभागों से अधिकांश वसूली की। 60 पार्षद थे उस समय, उन्होंने जो मांगा और जितनी आमदनी थी उस हिसाब से काम करवाया।
एक महिला का स्वभाव संवेदनशील और अपनत्व वाला होता है। सभी से अपील है कि महिला जो भी आए उसे सहयोग देने और लेने की भावना रखें। जोधपुर शहर का किस प्रकार से विकास हो यही ध्येय होना चाहिए। जो भी नेतृत्व संभाले वह पहले क्षेत्रवार आवश्यकताओं की प्राथमिकता तय करें। पार्षदों व अधिकारियों के प्रति महिलाओं को भी संवेदनशील रहना चाहिए। महिला भी अपने स्वभाव को आक्रामक न रखते हुए सभी के साथ मिलकर काम करे तो विकास की पटरी पर गाड़ी तेजी से दौड़ेगी।’
(सूर्यनगरी में अब दोनों नगर निगम में महिलाएं कमान संभालेगी। जोधपुर नगर निगम बनने के बाद महिला महापौर के तौर पर अपना पहला और अब तक का एकमात्र कार्यकाल पूरा करने वाली डॉ. ओमकुमारी गहलोत ने अपने अनुभव कुछ इस तरह से साझा किया। डॉ. गहलोत की कहानी उन्हीं की जुबानी। )