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आज भी निभाई जाती है विद्या अध्ययन के लिए काशी प्रस्थान की रस्म

locationजोधपुरPublished: May 17, 2019 07:45:40 pm

Submitted by:

Anil Sharma

विद्या अध्ययन के लिए यज्ञोपवीत संस्कार की प्राचीन परंपरा को यहां श्रीमाली ब्राह्मण समाज के लोग हूबहू आज तक निभाते चले आ रहे है। बस फर्क इतना ही है बालक यज्ञोपवीत संस्कार के बाद विद्या अर्जन के लिए काशी नहीं बल्कि पास ही के स्कूल में चला जाता है

It is still played today, for the study of Kashi departure ceremony

आज भी निभाई जाती है विद्या अध्ययन के लिए काशी प्रस्थान की रस्म

धुंधाड़ा. विद्या अध्ययन के लिए यज्ञोपवीत संस्कार की प्राचीन परंपरा को यहां श्रीमाली ब्राह्मण समाज के लोग हूबहू आज तक निभाते चले आ रहे है। बस फर्क इतना ही है बालक यज्ञोपवीत संस्कार के बाद विद्या अर्जन के लिए काशी नहीं बल्कि पास ही के स्कूल में चला जाता है वह भी पांच वर्ष की उम्र से पहले ही। पर 12 वर्ष का होने पर उसे यह परंपरा निभाने की औपचरिकता पूरी करनी होती है।
धारण करवाई जाती है जनेऊ –
जब बालक 12 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेता है तो उसका यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है। इसे जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है क्योंकि इसमें जनेऊ धारण करवाई जाती है। यह समारोह भी विवाह समारोह की तरह भव्य होता है। इसमें बालक का शुद्धिकरण कर मुंडन किया जाता है। हवन में आहुति प्रदान करते हुए मां गायत्री से उसे ब्रह्म तत्व प्राप्त हो ऐसा वरदान मांगा जाता है। प्राचीन समय में बालक को लंगोट पहनाया जाता था। समय के साथ यहां थोड़ा बदलाव यह आ गया है कि लंगोट की जगह उसे पीतांबर पहनाया जाता है। हवन में आहुति के बाद काशी प्रस्थान के लिए बालक को मुख्य स्थान पर ब्राह्मण वेशभूषा में एक हाथ में दंड जिसमें उसके लिए खाद्य सामग्री जिसमें खाजा और मिष्ठान डाले जाते हैं। उद्देश्य यह है कि बालक काशी तक जाएगा तो रास्ते में उसे भूख लगेगी और वह उस सामग्री को खा सकता है।
परखा जाता है आत्मविश्वास-

जनेऊ धारण करने के बाद बालक का आत्मविश्वास परखने के लिए पंडित उसे डराते है कि काशी जाओगे तो रास्ते में नदी नाले तालाब निर्जर वन और हिंसक जानवर आएंगे। बावजूद उसके जब वह बालक कहता था कि किसी भी सूरत में मुझे वेद वेदांग का अध्ययन करना है और मैं काशी जाऊंगा। तब उसे विद्या अध्ययन के लिए तैयार माना जाता है।
परिजन भी परखते है बालक को-
हामी के बाद बालक दौड़ कर काशी के लिए प्रस्थान करता है। इस दौरान ननिहाल पक्ष के मामा या मामा के बेटे भाइयों द्वारा उसको पकड़ कर फिर मनाया जाता है। फिर उसे नव वस्त्र और आभूषण प्रदान कर धूमधाम से घोड़े पर बिठाकर के वापस घर लाया जाता है।
महिलाओं ने गाए मंगलगीत-

इस परंपरा को निभाते हुए गुरुवार शाम कस्बे में 12 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके यश श्रीमाली व गोपाल श्रीमाली पुत्र चन्द्रशेखर श्रीमाली का ब्रहाचारी निर्मल स्वरूप के सानिध्य में पंडित टिकु श्रीमाली ने यज्ञोपवित संस्कार करवाया। काशी जाने की रस्म अदा कर दोनों बटुक को घोडे़ पर बैठाकर वापस घर लाया। इस दौरान महिलाओं ने मंगलगीत गाए। इसे देखने के लिए कोट चौक में मेले सा माहौल हो गया।
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