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जेएनवीयू पीएचडी मामला : चालान पेश करने से कुछ देर पहले ही पुलिस के उच्चाधिकारी ने बदली थी जांच

locationजोधपुरPublished: Jul 23, 2018 04:14:41 pm

Submitted by:

Harshwardhan bhati

शोधार्थी के विदेश में रहने के दौरान पीएचडी की डिग्री देने का मामला
 

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जोधपुर. विदेश में नौकरी करने वाले एक शोधार्थी को जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से पीएच.डी की डिग्री देने की पुलिस जांच में एक बार फिर घालमेल सामने आया है। पुलिस उपायुक्त (पूर्व) के आदेश पर कोर्ट में आरोपियों के खिलाफ चालान पेश करने से कुछ देर पहले पुलिस के उच्चाधिकारी ने पत्रावली तलब कर न सिर्फ जांच अधिकारी बदल दिया बल्कि एफआर भी लगा दी। जबकि जांच में आरोपियों के खिलाफ दस्तावेज साक्ष्य के आधार पर आरोप प्रमाणित माने गए थे।
नंदपुरी गोस्वामी ने २१ सितम्बर २००७ से जुलाई २००८ तक बहरीन में पीटीआई की नौकरी की थी। जबकि उनके सुपरवाइजर ने अपने हस्ताक्षरयुक्त प्रमाण पत्र देकर अवगत कराया था कि नंदपुरी ने फरवरी २००६ से ११ अक्टूबर २००८ तक जोधपुर में रहकर शोध कार्य किया था। सुपरवाइजर ने अपने रिसर्च स्कॉलर को फायदा पहुंचाने की नीयत से कूटरचित दस्तावेज बनाया और दुरुपयोग किया था। बीजेएस कॉलोनी में मोहन नगर बी (बीजेएस) निवासी डॉ. भूपेन्द्र सिंह सोढ़ा ने १३ अप्रेल २०१६ को उदयमंदिर थाने में जेएनवीयू में शारीरिक शिक्षा विभाग के तत्कालीन सुपरवाइजर डॉ. अमन सिंह सिसोदिया व मसूरिया में कुम्हारों की बगेची के पीछे निवासी शोधार्थी नंदपुरी गोस्वामी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था।
दस्तावेजों में जुर्म प्रमाणित…

– उदयमंदिर थाना पुलिस की जांच में पीएच.डी शोधार्थी को विवि का नियमित विद्यार्थी माना था।
– शोधार्थी की उपस्थिति नियमित रूप से सुपरवाइजर की ओर से ली जाना अनिवार्य बताया गया था। यह नोटिफिकेशन व विभागाध्यक्ष के बयानों से भी स्पष्ट है।
– नियमित उपस्थिति के आधार पर शोधार्थी की प्रगति रिपोर्ट हर छह माह में सुपरवाइजर की ओर से भरी जाने की पुष्टि हुई।
– अमन सिंह की ओर से जारी प्रमाण पत्र में शोधार्थी को फरवरी २००६ से ११ अक्टूबर २००८ तक जोधपुर में रहना बताया गया। इस अवधि में शोधार्थी ९ माह २४ दिन विदेश में रहा था। यह उसके मूल पत्र व पासपोर्ट प्रतिलिपि से स्पष्ट है।
– जुलाई २००७ से दिसम्बर २००७ तक अमन सिंह की ओर से शोधार्थी की जो प्रगति रिपोर्ट भरी गई उसमें उसके विदेश में रहना पाया गया। उपस्थिति ११३ दिन भरी गई थी। जबकि इस अवधि में वह देश में सिर्फ ८२ दिन ही रहा था।
चालान पेश करने के आदेश, लेकिन फिर लगाई एफआर

दस्तावेजों में आरोप प्रमाणित पाए जाने के बाद जांच रिपोर्ट के आधार पर इस जांच के आधार पर पुलिस उपायुक्त (पूर्व) ने आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश करने के आदेश दिए थे। आरोपियों को नोटिस भेजकर सूचित भी कर दिया गया, लेकिन उससे पहले पुलिस आयुक्त कार्यालय के आदेश पर पत्रावली मंगवा ली गई और जांच एसीपी (पूर्व) को सौंप दी गई।
एफआर या चालान पर चुप्पी


मामले की जांच करके पत्रावली कोर्ट में पेश करने के लिए भिजवा दी गई है। जांच का नतीजा चालान रहा है या एफआर यह बता नहीं सकता।

सुधीर चौधरी, प्रशिक्षु आइपीएस व सहायक पुलिस आयुक्त (पूर्व), जोधपुर
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