शहर के ऐसे क्षेत्र जहां महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर हैं और शिक्षा भी ज्यादा नहीं हैं। वहां ऐसे सेंटर खोले गए हैं। ‘संभली’ अब शहर में 7 से ज्यादा सेंटर चलाती है। प्रत्येक सेंटर पर 35 से ज्यादा महिलाएं एवं बच्चे आते हैं। तीन घंटे तक इन बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जाती है। साथ ही इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई व कसीदा सिखाया जाता है। इनमें कई महिलाएं यहां से सीखने के बाद रोजगार से भी जुड़ चुकी है।
लोगों को पसंद आ रही कसीदाकारी
लोगों को पसंद आ रही कसीदाकारी
ये महिलाएं सीखने के बाद जो कसीदाकारी करती है वह देश-विदेश में काफी पसंद की जा रही है। कई बुटिक व स्वयं सहायता समूह के लिए इनकी सिलाई व कसीदा किए हुए परिधान बेचे भी जाते हैं।
16…फोटो ::: यहां पढ़ाने वाली महिला की कहानी
मैं पहले ऐसे ही केन्द्र पर स्टूडेंट थी। यहां आकर सिलाई और कसीदा सीखती थी। यहां सीखने के बाद जब मुझे नौकरी की जरूरत हुई तो वापस ट्रस्ट के जरिये यहां लगी और महिलाओं को पढ़ाती हूं। साथ ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें हाथ का हुनर भी सिखाया जाता है। 30 से ज्यादा महिलाएं आती हैं। यह सब नि:शुल्क है।
मैं पहले ऐसे ही केन्द्र पर स्टूडेंट थी। यहां आकर सिलाई और कसीदा सीखती थी। यहां सीखने के बाद जब मुझे नौकरी की जरूरत हुई तो वापस ट्रस्ट के जरिये यहां लगी और महिलाओं को पढ़ाती हूं। साथ ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें हाथ का हुनर भी सिखाया जाता है। 30 से ज्यादा महिलाएं आती हैं। यह सब नि:शुल्क है।
– अंजू शर्मा 17…फोटो :: ऐसा शुरू किया ट्रस्ट
मैंने बचपन से ही महिलाओं को दु:खी और दुर्बल देखा। इसलिए उन्हें सशक्त बनाने के लिए यह ट्रस्ट बनाया। अभी 24 प्रोजेक्ट हैं। इसमें करीब 400 महिलाएं और बच्चे आते हैं जिन्हें शिक्षा और सिलाई-कसीदा का काम नि:शुल्क सिखाते हैं। काम सीखने के बाद उन्हें लगातार इस प्रकार का काम देने का भी प्रयास करते हैं।
मैंने बचपन से ही महिलाओं को दु:खी और दुर्बल देखा। इसलिए उन्हें सशक्त बनाने के लिए यह ट्रस्ट बनाया। अभी 24 प्रोजेक्ट हैं। इसमें करीब 400 महिलाएं और बच्चे आते हैं जिन्हें शिक्षा और सिलाई-कसीदा का काम नि:शुल्क सिखाते हैं। काम सीखने के बाद उन्हें लगातार इस प्रकार का काम देने का भी प्रयास करते हैं।
– गोविंद राठौड़